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________________ करने के लिए या तो वस्तु का नाम में निक्षेपण करना होता है अथवा किसी रूप या आकृति में । 1 वस्तु अनन्तधर्मात्मक है । हम उस अखण्ड वस्तु को नहीं जान सकते। उसे किसी एक पर्याय के माध्यम से जानते हैं । काल की दृष्टि से उसके तीन पर्याय हैं- भूतपर्याय, भावीपर्याय और वर्तमान पर्याय । भूतपर्याय एवं भावी पर्याय में भी वस्तु का उपचार या निक्षेपण किया जाता है । इन पर्यायों का सम्यक् ज्ञान करने के लिए विवक्षित वस्तु के पीछे विशेषण का प्रयोग किया जाता है जैसे - ज्ञशरीर द्रव्य और भावी शरीर द्रव्य । इन दोनों अवस्थाओं में चेतना की प्रवृत्ति नहीं होती, इसलिए ये पर्याय द्रव्य निक्षेप कहलाती हैं। जिस क्रिया के साथ चेतना जुड़ी रहती है उसे भाव कहा जाता है 1 निक्षेप का विकास क्रम क्षेत्र, काल आदि अनेक धर्म हैं । उनमें वस्तु का आरोपण किया जाता है 1 इसलिए निक्षेप अनेक बनते हैं । वस्तु के आन्तरिक और बाह्य जितने धर्म हैं उतने ही निक्षेप हो सकते हैं। इसलिए सूत्रकार ने निक्षेप संख्यातीत बताये हैं । उत्तराध्ययन निर्युक्ति में 'उत्तर' शब्द के पन्द्रह निक्षेप किये गये हैं नामं वा दविए खित्त दिसा तावखित्त पन्नव । पइकालसंचयपहाणनाणकमगणणओ भावे ॥ • आचारांगनिर्युक्ति में तथा कषायपाहुड़ में कषाय शब्द के आठ निक्षेप किये णामं ठवणा दविए उप्पत्ती पच्चए य आएसो । रसभावकसाए या तेण य कोहाड़या चउरो || आचारांगनिर्युक्ति, १६० कसाओ ताव णिक्खिवियव्वो णामकसाओ ठवणकसाओ दव्वकसाओ पच्चयकसाओ समुत्पत्तिकसाओ आदेसकसाओ रसकसाओ भावकसाओ चेदि । कषायपाहु २५७ निक्षेपका वस्तु अवबोध में महत्त्वपूर्ण स्थान है। जिस वस्तु में जितने निक्षेप किये जा सके उतने करने चाहिए किन्तु कम से कम चार निक्षेपों का प्रयोग अवश्य ६२ • व्रात्य दर्शन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003131
Book TitleVratya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages262
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size10 MB
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