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७. निक्षेप का उद्भव, विकास और स्वरूप
प्रमाण एवं नय के द्वारा वस्तु का ज्ञान प्राप्त होता है। वस्तु का सम्यक अवबोध प्राप्त करने के लिए सर्वप्रथम उस वस्तु का नाम, स्थापना, द्रव्य एवं भाव रूप में निक्षेपण/स्थापन किया जाता है। नाम, स्थापना आदि में वस्तु को स्थापित कर देने से उस वस्तु का ज्ञान करना सुगम हो जाता है। इस तथ्य को हम उदाहरण से समझ सकते हैं।
१. यथा-किसी भी पदार्थ का कोई न कोई नाम अवश्य होगा। एक पदार्थ विशेष का नाम 'घट' रख दिया यह उस वस्तु का नाम निक्षेप है।
२. पदार्थ का आकाराश्रित व्यवहार स्थापना निक्षेप है। जैसे घट के चित्र को 'घट' कहना यह घट का स्थापना निक्षेप है। किसी पदार्थ विशेष में यह स्थापित कर देना कि यह 'अमुक' है। जैसे किसी कौड़ी, लकड़ी आदि को कहना यह घट है। स्थापना भी दो प्रकार की होती है। घट की आकृति वाली वस्तु को घट कहना सद्भाव स्थापना है तथा लकड़ी, पत्थर आदि घट से असदृश आकार वाले पदार्थ को घट कहना असद्भाव स्थापना है।
३. पदार्थ की अतीत एवं अनागत अवस्था में 'अमुक' शब्द का प्रयोग करना द्रव्य निक्षेप है। जैसे-घट की पूर्व पर्याय मिट्टी को घट कहना अथवा घट की उत्तर पर्याय कपाल को घट कहना द्रव्य घट निक्षेप है।
४. विवक्षित कार्यापन्न पदार्थ के लिए उस शब्द विशेष का प्रयोग करना भाव निक्षेप है। जैसे जल आदि लाने की क्रिया में प्रयुक्त अर्थ को ही घट कहना।
'यह घट है' -इस वाक्य की व्याख्या में कम से कम चार प्रश्न उपस्थित होते हैं। यह घट किं रूप है-किसी का नाम घट है उसको यहां घट कहा जा रहा है अथवा किसी पदार्थ विशेष में घट की स्थापना करके उसे घट कह रहे हो अथवा जो वास्तविक घट है उसकी पूर्व या उत्तर पर्याय को घट कह रहे हो
६०. व्रात्य दर्शन
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