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होगा । पर्यावरण के प्रदूषण से मानव जाति का अस्तित्व ही संकटग्रस्त हो गया है । प्रकृति के सम्पूर्ण स्रोतों का अनावश्यक दोहन करने से वे समाप्त हो जायेंगे तथा ऐसी स्थिति में मानव संतति के अस्तित्व की कल्पना नहीं हो सकेगी । अतः अर्थव्यवस्था के सूत्रों का समाकलन भी विभिन्न दृष्टिकोणों को सामने रखकर सापेक्ष दृष्टि से उस पर विचार करने से ही समस्या का समाधान हो सकता है अनेकान्त दृष्टि के परिप्रेक्ष्य में उद्भूत होने वाली अर्थव्यवस्था संतुलित, व्यक्ति एवं समाजोपयोगी होगी, जिसमें व्यक्ति एवं समाज के साथ-साथ सम्पूर्ण वैश्विक हित को सामने रखा जायेगा ।
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व्रात्य दर्शन • ५६
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