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की दरार को पाटा जा सकेगा। अनेकांत छोटे एवं मध्यम आकार के व्यावसायिक साधनों के द्वारा सम्पूर्ण जगत् के सर्वोदय की विचारधारा से अनुप्राणित अर्थव्यवस्था प्रदान करेगा। पश्चिम के मानवतावादी अर्थशास्त्रियों ने ऐसी प्रकल्पना को आकार प्रदान करने के लिए कुछ प्रयोग भी किये हैं।
समाज व्यवस्था में इच्छा परिमाण एवं वैयक्तिक स्वामित्व की सीमा को मूर्त रूप देने वाला एक अनूठा प्रयोग पश्चिम में श्री अर्नेष्ट बेडर द्वारा ‘स्कोट बेडर कम्पनी' को 'स्कोट बेडर.कामनवेल्थ' में बदल कर किया। जिसका उल्लेख शूमाकर की पुस्तक Small is beautiful में हुआ है।
अर्थव्यवस्था को यदि मात्र एकांगी भौतिक उपलब्धियों के आधार पर खड़ा किया गया तो सम्पूर्ण जगत् के विनाश को आमन्त्रण होगा। आज अर्थशास्त्रियों ने अर्थ की कृत्रिम भूख को बढ़ाकर पूरे मानव समाज को संकट में डाल दिया है। आवश्यकताओं की पूर्ति को उचित माना जा सकता है किन्तु कृत्रिम क्षुधा की शांति होना असम्भव है Alvin Toffler ने अपनी पुस्तक Future shock में अति यान्त्रिकी विकास एवं अति प्राद्योगिकी के भयावह परिणामों से आगाह करते हुए निष्कर्ष प्रस्तुत किया है कि-'भविष्य के भयंकर खतरों के विरोध के लिए हमें परम औद्योगिक समाज के नियोजन में मानवता के पक्ष को केन्द्र में रखना होगा। हमारे राजनैतिक ढांचे के नियोजन में भी मानवीकरण प्रतिबिम्बित होना चाहिये। ___मानव ने अपने आर्थिक विकास के लिए प्रकृति में जीने वाले अन्य प्राणियों के जीवन को उपेक्षित किया। उनका सम्यक् मूल्यांकन नहीं किया। पश्चिम के धर्म के अनुसार प्रकृति का निर्माण मात्र मनुष्य के लिए हुआ है। उस विचार के परिप्रेक्ष्य में पलने वाली अर्थव्यवस्था मनुष्य से इतर किसी को भी मूल्यवत्ता देने को तैयार नहीं है। भारत की संस्कृति में मनुष्य को श्रेष्ठता प्रदान की गयी वह इसलिए नहीं कि वह प्रकृति का उपभोग करने में स्वतन्त्र है बल्कि इसलिए की गयी कि वह हिताहित का विचार कर त्याग चेतना के द्वारा सम्पूर्ण चेतन जगत् के साथ तादात्म्य स्थापित करता है। भारतीय संस्कृति का केन्द्र मनुष्य नहीं किन्तु वसुधैव-कुटुम्ब की अवधारणा है। टांग खींचने वाली प्रतिस्पर्धा नहीं किन्तु 'परस्परोपग्रह जीवानाम्' का सूत्र है। अनेकान्त उस संस्कृति का संवाहक
- मनुष्य को ही एकमात्र केन्द्र में रखने वाली विचारधारा को भी पर्यावरण के संकट को देखते हुए आर्थिक विकास के मापदण्डों को पुनर्व्याख्यायित करना ५८ . व्रात्य दर्शन
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