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________________ अनेकान्त की अर्थव्यवस्था में अभाव एवं प्रभाव दोनों के मध्य संतुलन होगा। अर्थ के अभाव में जीवन यात्रा चल नहीं सकती। अर्थ का प्रभाव विलासिता को जन्म देता है। अनेकान्त मध्यम मार्ग है। भगवान महावीर ने कहा-सब धर्मों का मूल सम्यक दर्शन है। अर्थ के सम्बन्ध में भी सम्यक दृष्टिकोण का जागरण आवश्यक है। अर्थ का असीम प्रभाव जीवन यात्रा को बाधित करता है। भगवान महावीर ने श्रावक के बारह व्रतों का निरूपण किया। बारह ही व्रत स्वस्थ समाज संरचना में महत्त्वपूर्ण योगदान देने में समर्थ है। अर्थव्यवस्था के संदर्भ में अचौर्य-अणुव्रत, इच्छापरिमाण, भोग-उपभोग विरति एवं दिग्व्रत का महत्त्वपूर्ण स्थान है। अनेकान्त की अर्थव्यवस्था को इन चार व्रतों के आलोक में व्याख्यायित करके अर्थनीति को नया आयाम प्रदान किया जा सकता है। ___अनेकान्त की अर्थव्यवस्था में साध्य प्राप्ति में साधन शुद्धि की तरफ ध्यान दिया जायेगा। इच्छाओं के अल्पीकरण का सिद्धान्त इस व्यवस्था का केन्द्रीय बिन्दु होगा। व्यक्तिगत भोग की सीमा का स्वीकार वर्तमान अर्थनीति की विसंगतियों को दूर करने में समर्थ होगा। दिग्व्रत की अवधारणा का मूल्यांकन स्वदेशी की अवधारणा की स्पष्टता में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। ___इच्छा के आधार पर तीन विभाग किये जा सकते हैं-महेच्छा, अल्पेच्छा एवं अनिच्छा। जिस समाज या व्यक्ति में महेच्छा अर्थात् असीम, अनियंत्रित इच्छा होती है, उसका आकर्षण मात्र भौतिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति की तरफ ही होगा। फलस्वरूप भ्रष्टाचार, अनैतिकता आदि राष्ट्रीय समस्याओं का तथा तनाव, हार्ट अटैक आदि भयंकर शारीरिक समस्याओं का प्रादुर्भाव होगा। महेच्छा के आधार पर निर्मित अर्थशास्त्र हिंसा प्रेरित, स्वार्थ प्रेरित एवं असंयम प्रेरित होगा, जिससे विकास नहीं किन्तु विनाश के द्वार उद्घाटित होंगे। प्रकृति के असंतुलन एवं पर्यावरण प्रदूषण जैसी मानव जाति के अस्तित्व की विनाशक समस्याओं का आविर्भाव होगा जो व्यक्ति को दुःख के सागर में निमज्जित कर देगी। __ अनिच्छा अर्थात् इच्छा का अभाव अपरिग्रही श्रमणों का निर्माण कर सकता है। अध्यात्म की पावन स्रोतस्विनी को प्रवाहित कर सकता है किन्तु आदर्श समाज अथवा अर्थव्यवस्था का निर्माण इससे सम्भव नहीं है। अल्पेच्छा अर्थात् मध्यम मार्ग, न ही इच्छाओं की असीमता तथा न ही इच्छाओं का अभाव किन्तु दोनों के मध्य का मार्ग इच्छा-परिमाण है। इस विचार के आधार पर अनेकान्त की अर्थव्यवस्था का जन्म होगा। जो मानव मात्र के लिए हितावह होगी। मध्यम मार्ग के उपायों के द्वारा गरीब एवं अमीर के बीच व्रात्य दर्शन . ५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003131
Book TitleVratya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages262
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size10 MB
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