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एवं संतुलित अर्थव्यवस्था का विकास होगा।
___ अर्थशास्त्र का सूत्र है 'आवश्यकता बढ़ाओ, उत्पादन बढ़ेगा।' आर्थिक विकास के लिए इस विचार की उपयोगिता को नकारा नहीं जा सकता किन्तु इसे ही एकमात्र सत्य मानना एकान्त है। आर्थिक विकास के चिंतन के साथ आज पर्यावरण की सुरक्षा के संदर्भ में विमर्श आवश्यक है। आर्थिक विकास की होड़ ने प्रकृति का अनावश्यक दोहन किया है फलस्वरूप प्रकृति का संतुलन गड़बड़ा गया है। पर्यावरण का प्रदूषण इस स्थिति में पहुंच गया है जहां मानव का ही नहीं, प्राणी मात्र का अस्तित्व विनाश के कगार पर है। यदि वर्तमान रफ्तार से आर्थिक विकास की ओट में प्रकृति के साथ छेड़छाड़ होती रही तो वह मनहूस दिन दूर नहीं जिस दिन सम्पूर्ण सृष्टि प्रलय की आगोश में होगी। अणुबम से भी अधिक खतरनाक पर्यावरण प्रदूषण की समस्या है।
अनेकान्त का दर्शन इस स्थिति में आलोक स्तम्भ बन सकता है। अनेकान्त की अर्थनीति का प्रथम सूत्र होगा-इच्छा का परिमाण। सामाजिक मनुष्य इच्छा
और आवश्यकताओं को समाप्त करके अपने जीवन का निर्वाह नहीं कर सकता। किन्तु इच्छाओं का नियमन तो उसे अपने अस्तित्व की सुरक्षा के लिए भी करना होगा। इच्छा परिमाण मात्र धर्म के क्षेत्र का सूत्र नहीं किन्तु पर्यावरण की सुरक्षा का सूत्र है। आज मानवतावादी अर्थशास्त्री कहने लगे हैं कि अच्छा जीवन केवल धार्मिक दृष्टिकोण से ही आवश्यक नहीं है किन्तु मानवता को विनाश से बचाने के लिए अनिवार्य है।
Right living is no longer only the fullfilment of an ethical and religious demand. For the first time in history the physical survival of the human race depends on a redical change of the human heart.
__ भगवान महावीर अपरिग्रह के प्रवक्ता थे किन्तु उन्होंने सामाजिक व्यक्ति के लिए सम्पूर्ण अपरिग्रह का सिद्धान्त नहीं दिया। श्रावक के बारह व्रतों में सम्पूर्ण अपरिग्रह का व्रत नहीं है किन्तु इच्छा के नियमन का व्रत है। हमें यह चिंतन करना है कि अर्थ किसके लिए है? अर्थनीति के निर्धारण के केन्द्र में कौन है? व्यक्ति के लिए अर्थ है अथवा अर्थ के लिए व्यक्ति है? सिद्धान्ततः तो सभी यह स्वीकार करते हैं कि अर्थ व्यक्ति के लिए है किन्तु व्यवहार में विपर्यय हो रहा है। व्यक्ति अर्थ पैदा करने की मशीन मात्र बन गया है। अर्थ प्राप्ति की दौड़ में व्यक्ति की स्वतन्त्रता समाप्त-सी हो गयी। आवश्यकताओं का असीमित दबाव व्यक्ति में शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक तनाव को उत्पन्न कर रहा
व्रात्य दर्शन • ५५
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