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________________ प्रधान सिद्धान्त है। कोई भी व्यक्तिगत पूंजी का संचय नहीं कर सकता। साम्यवादी अर्थव्यवस्था को क्रान्तिकारी समाजवादी आर्थिक व्यवस्था भी कहा जा सकता है। मार्क्स को इस व्यवस्था का जनक माना जाता है। कोई भी व्यवस्था सर्वथा पूर्ण नहीं होती और न ही सर्वथा भ्रान्त। पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में भौतिक साधनों की वृद्धि को ही विकास का आधार माना गया। अर्थ के आधार पर व्यक्ति विशेष का विभाजन हुआ। पूंजीवादी व्यवस्था में व्यक्ति को अर्थ/धन के बटखरों से तोला जाने लगा। जिसके पास जितना अधिक धन वह उतना ही बड़ा व्यक्ति, इस चिंतन से समाज में आपसी मेल-मिलाप कम हुआ। वैमनस्य के बीज अंकुरित हुए। भाई-भाई का आपस में बंटवारा हो गया। जितनी आर्थिक समृद्धि बढ़ी उतनी ही मानसिक व्यथाएं भी बढ़ गयी। तनाव एवं अशांति भी बढ़ गयी। साम्यवादी व्यवस्था में मात्र समूह/समाज पर ध्यान केन्द्रित किया गया। व्यक्ति को मात्र यंत्र समझा गया। व्यक्ति का शोषण हुआ, उसकी वैयक्तिकता कुंठित हो गयी। कार्य की अभिप्रेरणा ही समाप्त हो गयी। साम्यवाद में व्यवस्था को तो बदला गया किन्तु व्यक्ति को उपेक्षित कर दिया। फलस्वरूप आर्थिक विकास का मार्ग अवरुद्ध हो गया। व्यक्ति कर्तव्य एवं दायित्व से उन्मुख होने लगा। अनेकान्त के आलोक में अर्थनीति पर विमर्श करने पर नये तथ्य प्राप्त होते हैं। अनेकान्त की अर्थनीति में व्यक्ति एवं समूह को सापेक्ष महत्त्व दिया जाता है। व्यक्ति की व्यक्तिगत चेतना कुंठित भी न हो कि वह कोई कार्य ही न कर सके और न ही इतनी उच्छृखल हो कि उसकी उपस्थिति में अन्य की स्वतन्त्रता का/अस्तित्व का ही हनन हो जाये। महावीर अनेकान्त सिद्धान्त के व्याख्याता थे। वे अध्यात्मशास्त्री थे, अर्थशास्त्री नहीं थे किन्तु उनके दर्शन एवं चिंतन के आलोक में एक अभिनव अर्थ-व्यवस्था स्फुरित होती है। अनेकान्त की अर्थव्यवस्था में सर्वोदय की संस्तुति है। आचार्य समन्तभद्र ने सर्वप्रथम सर्वोदय शब्द का प्रयोग किया था। सर्वोदय का तात्पर्य है सबका उदय, प्राणी मात्र का उदय/विकास । प्रस्तुत प्रसंग में सम्पूर्ण मानव जाति की हित चिंता इस सिद्धान्त में निहित है। जीवन के हर पहलू पर सबका समान विकास हो, यह अभिलषणीय है। अनेकान्त की अर्थव्यवस्था विकेन्द्रित होगी। किसी व्यक्ति या समूह के पास अर्थ का एकाधिकार नहीं होगा। जहां सत्ता, सम्पदा एवं शक्ति केन्द्रित होते हैं, व्यक्ति अथवा समूह निष्ठ बन जाते हैं वहां अनेक समस्याओं का जन्म होता है। अनेकान्त की अर्थव्यवस्था में (Wholestic approach) होगी जिससे मर्यादित ५४ . व्रात्य दर्शन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003131
Book TitleVratya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages262
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size10 MB
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