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वीतराग का दर्शन नहीं होता
उदधाविव सर्वसन्धिवः, समुदीर्णास्त्वयि नाथ ! दृष्टयः । न च तासु भवान् प्रदृश्यते प्रविभक्तासु सरित्स्वोदधिः ।
अनेकान्त दर्शन वस्तु की सम्यक् व्यवस्था करने में सक्षम है। नय की उस वस्तु व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका है। नय की अवधारणा जैन दर्शन की मौलिक अवधारणा है। दार्शनिक जगत् को यह जैन दर्शन का बहुमूल्य अवदान है।
४६ • व्रात्य दर्शन
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