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कहा जाता है। देश, काल, उपचार, लोकरूढ़ि आदि के अनुसार संकल्प अनेक प्रकार का होता है। जैसे-ईंधन, जल आदि सामग्री लाने में प्रवृत्त व्यक्ति से पूछने पर वह कहता है-मैं चावल पकाता हूं, यह अपूर्ण क्रिया में पूर्णता का संकल्प है। आज भगवान महावीर का निर्वाण दिन है यह अतीत में वर्तमान का संकल्प है। यह नवजात शिशु विद्वान् है यह वर्तमान में भविष्य का संकल्प है। नैगम नय में इन सबका समावेश हो जाता है।
नैगमाभास
धर्म, धर्मी में सर्वथा भेद मानना, एक धर्मी के दो धर्मों में सर्वथा भेद मान लेना नैगमाभास है। एक धर्मी के दो धर्मों की गौण प्रधान भाव से विवक्षा करना नैगम है। इसके विपरीत नैगमाभास है।
गुणप्रधानभावेन धर्मयोरेकधर्मिणी।
विवक्षा नैगमोऽत्यन्तभेदोक्तिः स्यात्तदाकृतिः। संग्रहनय
सामान्य या अभेद का ग्रहण करने वाली दृष्टि संग्रह नय है। अभेदग्राही संग्रहः। पर एवं अपर के भेद से संग्रहनय दो प्रकार का है। 'महासामान्यविषयः परः' महासामान्य का ग्रहण करनेवाला परसंग्रह नय है। परसंग्रह में जीव, अजीव आदि सकल पदार्थों का एकत्व अभिप्रेत है। 'विश्वमेकं सतो विशेषात्' विश्व एक है क्योंकि अस्तित्व की दृष्टि से कोई भिन्न नहीं है।
___ 'अवान्तरसामान्यविषयोऽपरः' अपर संग्रह नय द्रव्यत्व आदि अवान्तर सामान्य को ग्रहण करता है। सब द्रव्य एक हैं क्योंकि द्रव्यत्व की दृष्टि से कोई भिन्न नहीं है, सब पर्याय एक हैं क्योंकि पर्यायत्व की दृष्टि से कोई भिन्न नहीं है।
संग्रहाभास
___ निरपेक्ष अभेद की स्वीकृति संग्रहाभास है क्योंकि भेद से शून्य सन्मात्र तत्त्व का स्वरूप प्रमाण से सिद्ध नहीं होता। जितने भी द्वैत निरपेक्ष अद्वैत हैं वे संग्रहाभास के उदाहरण हैं। आचार्य अकलंक ने संग्रह एवं संग्रहाभास को एक ही श्लोक में निबद्ध किया है
सदभेदात् समस्तैक्य संग्रहात् संग्रहो नयः। दुर्नयो ब्रह्मवादः स्यात्तत्स्वरूपानवाप्तितः ॥
४२ . व्रात्य दर्शन
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