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________________ समन्वय इन नयों में हो जाता है। नय परिभाषा अनेकान्त का व्यावहारिक रूप नय है। नयों की कल्पना न तीर्थान्तरीय चिंतन से प्रभावित है न वह निराधार है किन्तु वस्तु आधारित अभ्युपगम है। तत्वार्थसूत्र में कहा है कि 'नैते तन्त्रातरीया नापि मतिभेदेन प्रधाविता ज्ञेयस्य त्वर्थस्याध्यवसायान्तराण्येतानि' । वस्तुतः ज्ञाता का जो अभिप्राय है वही नय है। नयो ज्ञातुरभिप्रायः। आप्तमीमांसा में नय का एक प्राचीनतम लक्षण उपलब्ध है। हेतु के द्वारा किसी साध्य विशेष की सिद्धि करना नय है। नय विशेष को अभिव्यक्त करता है 'सधर्मणैव साध्यस्य साधादविरोधतः।' स्याद्वादप्रविभक्तार्थ विशेषव्यञ्जको नयः ॥ उदाहरण के साथ साध्य के साधर्म्य एवं वैधर्म्य के आधार पर तत्त्व स्वरूप का निर्णय करना ही नय है। धवला में नय को परिभाषित करते हुए कहा गया-प्रामाणपरिच्छिन्नवस्तुनः एकदेशे वस्तुत्वार्पणा नयः' प्रमाण से ज्ञात वस्तु के एकदेश में वस्तुत्व की अर्पणा नय है। श्री भिक्षुन्यायकर्णिका में नय को परिभाषित करते हुये कहा गया'अनिराकृतेतरांशो वस्त्वंशग्राही ज्ञातुरभिप्रायो नयः' वस्तु के एक अंश का ग्राहक एवं अन्य अंशों का निराकरण न करने वाले ज्ञाता के अभिप्राय को नय कहा जाता है। शब्दभेद से प्रायः नय की एक जैसी परिभाषाएं उपलब्ध है। अब संक्षेप में नैगम आदि सात नय एवं नयाभासों का विवेचन प्रस्तुत है। नैगमनय _ 'भेदाभेदग्राही नैगमः' गुण और गुणी, अवयव और अवयवी आदि में भेद और अभेद की विवक्षा करना नैगमनय है। नैकं गमो नैगमः' जो धर्म और धर्मी में से एक को ही नहीं जानता किन्तु गौणता एवं मुख्यता से दोनों को जानता है वह नैगम नय है। “संकल्पग्राही च' संकल्पग्राही विचार को भी नैगम कहा जाता है। निगम शब्द का अर्थ, देश, संकल्प और उपचार है, इनमें होने वाला अभिप्राय नैगम नय है। निगमः देशः संकल्प उपचारो वा तत्र भवो नैगमः । नैगम नय के भाव और अभाव दोनों ही विषय है, अतः संकल्पग्राही विचार को भी नैगम नय व्रात्य दर्शन • ४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003131
Book TitleVratya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages262
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size10 MB
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