________________
1
सरस और सुखी जीवन का मूल मंत्र है । दृष्टि की एकांगिता आग्रह को जन्म देती है । आग्रह हिंसा है, जिसकी भूमिका में वैमनस्य और दुर्भावनाओं के बीज अंकुरित होते हैं, जो एक दिन विष-वृक्ष के रूप में हमारे सामने प्रस्तुत होते हैं वार्तमानिक, सामाजिक, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान में भी अनेकान्त विचार का महत्त्वपूर्ण योगदान हो सकता है। शोषणहीन समाज की संरचना, निःशस्त्रीकरण, विश्वमैत्री, सह-अस्तित्व आदि दृष्टियों एवं सिद्धान्तों का पल्लवन, उन्नयन स्याद्वाद के द्वारा संभव है । अपेक्षा है अनेकांतवाद और स्याद्वाद - इन दोनों का ही वर्तमान समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में अध्ययन किया जाए और मानवीय व्यवहार के साथ इस महान् दर्शन को जोड़कर जागतिक स्तर पर समन्वय और सह-अस्तित्व को प्रतिष्ठित किया जाये ।
३८ • व्रात्य दर्शन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org