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आधिपत्य, तेजस्विता, कलाओं से परिपूर्णता, सौम्यता, दर्शनश्रुत सम्पन्नता, ज्ञान की निर्मलता आदि गुणों से बहुश्रुत अभिमण्डित होता है। ___ उत्तराध्ययन सूत्र में सूत्रकार ने बहुश्रुत को अनेक उपमाओं से उपमित किया है। वे सारी उपमाएं बहुश्रुत की आंतरिक शक्ति और तेजस्विता को प्रकट करती है। बहुश्रुत के लिए प्रयुक्त कुछ उपमाओं का उल्लेख प्रस्तुत है जो मननीय है
१. बहुश्रुत कम्बोज के घोड़ों की तरह शील से श्रेष्ठ होता है। २. बहुश्रुत दृढ़ पराक्रमी योद्धा की तरह अजेय होता है। ३. बहुश्रुत उगते हुये सूर्य की भांति तप के तेज से प्रज्वलित होता है। ४. बहुश्रुत पूर्णिमा के चन्द्रमा की भांति सकल कलाओं से परिपूर्ण होता है। ५. बहुश्रुत धान से भरे कोठों की भांति श्रुत से परिपूर्ण होता है।
इस प्रकार की अनेक उपमाओं से बहुश्रुत को उपमित किया गया है। प्रश्नव्याकरण में आगत मुनि के विशेषणों से बहुश्रुत की इन विशेषताओं की तुलना की जा सकती है।
बहुश्रुत का सम्मान
बहुश्रुत व्यक्ति का संघ एवं संगठन में बहुत सम्मान होता है। उसकी अपने समूह में अत्यन्त प्रतिष्ठा होती है। बहुश्रुत आदेयवचन हो जाता है। आचार्य भिक्षु ने अपनी संघीय व्यवस्था में स्थान-स्थान पर बहुश्रुत के प्रति सम्मान के भाव प्रकट किये हैं। बहुश्रुत का आचार और व्यवहार शैक्ष के लिए अनुकरणीय होता
वार्तमानिक परिप्रेक्ष्य में बहुश्रुत की अवधारणा का यथार्थीकरण शिक्षा जगत् की अनेक समस्याओं का समाधायक हो सकता है। श्रुत एवं शील सम्पन्नता अखण्ड व्यक्तित्व की अनिवार्य शर्त है। ज्ञान पक्ष के साथ-साथ व्यक्ति का आचार पक्ष भी अत्यन्त उज्ज्वल हो यह अत्यन्त अपेक्षित है, व्यक्ति कोरा किताबी शिक्षा से ज्ञानी नहीं बने किन्तु शील की सुगन्ध से सुवासित होकर बहुश्रुत बने, यह काम्य है।
व्रात्य दर्शन - २१
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