________________
की योग्यता का वर्णन करते हये कहा गया-जो नित्य-अनित्य वस्तु का विवेक करने वाला है। इहलोक और परलोक के फल में अनासक्त है, शम, दम, तितिक्षा, उपरति, समाधि एवं श्रद्धा इन छह सम्पत्तियों से युक्त है वह ब्रह्मविद्या का अधिकारी है। जो प्रशान्तचित्त है, जितेन्द्रिय है, गुरु की दृष्टि का अनुगमन करने वाला है, पवित्र है ऐसे व्यक्ति को ब्रह्मज्ञान सदा ही देना चाहिए
प्रशान्तचित्ताय जितेन्द्रियाय च प्रहीणदोषाय यथोक्तकारिणे।
गुणान्वितानुगताय सर्वदा प्रदेयमेतत् सततं मुमुक्षवे ॥ इससे फलित होता है कि सम्पूर्ण भारतीय चिंतन आचार एवं ज्ञान की समन्विति को ही श्रेय समझता है। आचरण शून्य ज्ञान अंकरहित शून्य के समान है। वर्तमान में भी 'emotional inteligence' की चर्चा हो रही है। जो व्यक्ति के चारित्र से ही जुड़ी हुई है।
बहुश्रुतता की प्राप्ति का प्रमुख कारण है-विनय । जो व्यक्ति विनीत होता है उसका श्रुत फलवान होता है। जो विनीत नहीं होता उसका श्रुत फलवान नहीं होता। विद्या और विनय का परस्पर तादात्म्य सम्बन्ध भारतीय चिंतन का फलित है। जो अविनीत होता है वह पढ़ा लिखा होने पर भी अबहुश्रुत है। उत्तराध्ययन में अबहुश्रुत को व्याख्यायित करते हुये कहा गया
जे यावि होइ निव्विज्जे, थद्धे लुद्धे अणिग्गहे ।
अभिक्खणं उल्लवई, अविणीए अबहुस्सुए ॥ जो विद्याहीन है. विद्यावान होते हए भी जो अभिमानी है, जो सरस आहार में लुब्ध है, जो अजितेन्द्रिय है, जो बार-बार असम्बद्ध बोलता है, जो अविनीत है, वह अबहुश्रुत है। शिक्षा के विघ्न
शिक्षा के दो प्रकार हैं-ग्रहण और आसेवन। ज्ञान प्राप्त करने को ग्रहण और उसके अनुसार आचरण करने को आसेवन शिक्षा कहा जाता है। पांच कारणों से व्यक्ति शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकता, वे शिक्षा के विघ्न हैं। उत्तराध्ययन में इसका उल्लेख करते हुए कहा
अह पंचहिं ठाणेहिं, जेहिं सिक्खा न लब्भई। थंभा कोहा पमाएणं, रोगेणाऽलस्सएण य ॥
१८. व्रात्य दर्शन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org