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________________ क्षायिक होता है अतः केवली के क्षयोपशम रूप मन नहीं है यह तथ्य प्रज्ञापना में प्रस्तुत है। भगवती सूत्र में केवली में मन के अस्तित्व को स्वीकार किया गया है।३१ इन दोनों वक्तव्यों की संगति द्रव्यमन एवं भावमन के आधार पर हो सकती है। मन दो प्रकार का होता है-द्रव्यमन और भावमन। द्रव्यमन पौद्गलिक होता है तथा भावमन ज्ञानात्मक होता है। केवली के भावमन नहीं होता क्योंकि उन्हें इसकी कोई आवश्यकता ही नहीं है किन्तु उनके द्रव्य मन होता है इस अपेक्षा से केवली के मन का अस्तित्व है। भगवती सूत्र के ५/१०३-१०६ सूत्रों में मानसिक संप्रेषण का सिद्धान्त प्रतिपादित हुआ है। अनुत्तर विमान के देवों के मन में कोई प्रश्न उपस्थित होता है तो वे वहां बैठे-बैठे मनुष्यलोक में विद्यमान केवली के साथ मानसिक आलाप-संलाप करते हैं। केवली उनके प्रश्न जानकर मानसिक स्तर पर उसका उत्तर देते हैं। वे प्रश्नकर्ता देव केवली की मनोद्रव्य वर्गणा के आधार पर उसे जान लेते हैं। इससे स्पष्ट है कि केवली के मन होता है। केवली के ज्ञानात्मक भावमन नहीं होता किंतु योगरूप मानसिक प्रवृत्ति होती है। केवली कुछ कहना चाहते हैं तब उनके आत्म-प्रदेशों में स्पन्दन होता है। उससे मनोद्रव्य वर्गणा (मानसिक पुद्गल स्कन्धों) का ग्रहण होता है।३२ उन पुद्गलों के माध्यम से अनुत्तर देव अपने प्रश्नों का समाधान प्राप्त कर लेते हैं। श्रीमद् जयाचार्य ने अपनी चौबीसी में इसका उल्लेख करते हुये कहा है 'सुर अनुत्तर विमान ना सेवैरे प्रश्न पूछ्या जिन उत्तर देवे रे । अवधिज्ञान करि जाण लैवे, प्रभु नमिनाथ जी मुझ प्यारा रे२३ इन तथ्यों से स्पष्ट हो जाता है कि केवली के भी मन होता है। सर्वज्ञता एवं नियतिवाद केवली सर्वद्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव को जानते हैं। यह आगमिक वक्तव्य है। इसका तात्पर्य है कि केवली यथार्थदर्शी होते हैं। जो भाव जैसा होता है उसे वैसा ही जानते हैं अर्थात् नियत को नियत जानते हैं, अनियत को अनियत जानते हैं। कुछ व्यक्ति सर्वज्ञता के साथ नियतिवाद को जोड़ देते हैं किंतु यह भ्रामक है क्योंकि सर्वज्ञ नियत को ही नियत जानता है अनियत को नियत नहीं जानता। १२ . व्रात्य दर्शन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003131
Book TitleVratya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages262
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size10 MB
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