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राग-द्वेष एवं मोह का नाश हुए बिना केवलज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती, यह सर्वविदित तथ्य है। कुछ दार्शनिक इन राग आदि को कर्मजन्य न मानकर शरीरगत वैषम्य एवं बाह्य परिस्थिति से उद्भूत मानते हैं, अतः उनका अभिमत है कि सशरीर अवस्था में राग आदि नष्ट नहीं हो सकते तथा उनके नष्ट हुये बिना सर्वज्ञता प्राप्त नहीं हो सकती । आचार्य यशोविजयजी ने ज्ञानबिन्दु में ऐसे तीन मतों का उल्लेख कर उनका निरसन किया है ।
बृहस्पति दर्शन के अनुयायी राग आदि को कर्म निमित्तक नहीं मानते हैं, उनका मन्तव्य है कि राग का हेतु कफ, द्वेष का हेतु पित्त एवं मोह का हेतु वाता है। वे शरीर में सदैव विद्यमान रहते है अतः वीतरागतापूर्वक होने वाली सर्वज्ञता सशरीर अवस्था में संभव ही नहीं है। एक दूसरा मत राग को शुक्रोपचयहेतुक मानता है। तीसरे मत के अनुसार शरीर में पृथ्वी एवं जल तत्त्व की वृद्धि से राग पैदा होता है। तेज और वायु तत्त्व की वृद्धि से द्वेष पैदा होता है तथा जल और वायु की वृद्धि से मोह पैदा होते हैं । वे कर्मकृत नहीं है । उपाध्यायजी ने इन तीनों मतो का निरसन किया है तथा राग-द्वेष को कर्मकृत ही माना है । नंदी में आगत केवलज्ञान का सयोगी केवली भेद इसी अवधारणा को पुष्ट करता है कि शरीर अवस्था में कर्मकृत राग, द्वेष आदि नष्ट हो जाते हैं क्योंकि वे कफ आदि दोष जन्य नहीं है । राग एवं द्वेष कर्म के कारण है । जब कर्मों का नाश हो जाता है तब वे भी समाप्त हो जाते हैं इनके समाप्त होने से जीव, वीतराग एवं सर्वज्ञ बन जाता है
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मनुष्य की सर्वज्ञता
सर्वज्ञता दर्शन जगत् का बहुचर्चित एवं विमर्शनीय बिन्दु रहा है। मनुष्य की सर्वज्ञता की अवधारणा पश्चिम के दर्शन में नहीं है वहां मात्र ईश्वर को सर्वज्ञ (Omni-science) कहा जाता है। भारतीय दर्शन में सामान्यरूप से यह सिद्धान्त यौगिक सिद्धि अथवा मोक्ष से जुड़ा हुआ है। योग के द्वारा सर्वज्ञता प्राप्त होती है। दो प्रकार के योगी होते हैं - १. युक्त योगी, २. युञ्जान योगी । युक्त योगी को निरन्तर एवं एक साथ सब वस्तुओं का ज्ञान होता रहता है जबकि युञ्जान योगी को सब वस्तुओं का ज्ञान करने के लिए एकाग्रता का सहारा लेना पड़ता है, बिना उपयोग लगाये वह वस्तुओं का ज्ञान नहीं कर सकता। योगदर्शन में ऋतम्भरा प्रज्ञा का उल्लेख प्राप्त है, जो एक साथ सारे विषयों को जानती है, जैन दर्शन में इस अवस्था को सर्वज्ञता / केवलज्ञान कहा जाता है । धर्ममेघ समाधि
४ • व्रात्य दर्शन
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