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तेजस शरीर
तैजस् शब्द अग्नि का वाचक है । तैजस शरीरनामकर्म के उदय से तेजो गुणयुक्त तैजस् पुद्गलों की वर्गणा से निर्मित शरीर को तैजस शरीर कहा जाता है । तैजस शरीर दो प्रकार का होता है - लब्धिजन्य एवं स्वाभाविक | उत्तरगुणों की अनुपालना से शाप एवं अनुग्रह प्रदान करने में समर्थ उष्णगुण युक्त तेजोलब्धि उत्पन्न होती है । लब्धिजन्य तैजस शरीर में दूसरे का हित-अहित संपादित करने का सामर्थ्य होता है । गोशालक की तरह जिसको तैजस लब्धिप्राप्त है वह क्रोध आदि कषायों के वशीभूत होकर अपने शरीर से तैजस का पुतला निकालते हैं जो उष्ण गुणयुक्त होने के कारण दूसरों को जलाने में समर्थ होता है । इस लब्धि के धारक प्रसन्न होने पर शीतगुणयुक्त पुतला शरीर से बाहर निकालते हैं जो दूसरों का अनुग्रह करने में समर्थ होता है। इसकी किरणें शीतल एवं संताप का हरण करने वाली होती हैं । २४
तेजस शरीर दीप्ति, कान्ति आदि का हेतु बनता है। शरीर की आभा, तेजस्विता का निमित्त तैजस शरीर है । आज विज्ञान आभामण्डल के चित्र ले रहा है, एक प्रकार से ये तैजस शरीर के ही चित्रांकन हैं ।
जो तैजस शरीर लब्धिजन्य नहीं है वह सभी प्राणियों में स्वभाव से रहता है । उसकी प्राप्ति के लिए चारित्र आदि गुणों की आवश्यकता नहीं होती है । वह तैजस शरीर पाचन शक्ति से युक्त होता है तथा प्राणी जो आहार ग्रहण करता है उसको पचाने में समर्थ होता है | २५
अनुयोगद्वार चूर्णि में कहा गया जो ऊष्मामय है जिससे आहार का परिपाक होकर रस आदि निष्पन्न होते हैं, जो तेजोलब्धिका निमित्त है, वह तैजस शरीर है । २६ तैजस शरीर सभी संसारी प्राणियों के होता है । इसके विभिन्न प्रकार के संस्थान होते हैं। जैसा औदारिक एवं वैक्रिय शरीर का आकार प्रकार होगा वैसा ही तैजस एवं कार्मण का संस्थान हो जाता है किंतु समुद्घात के समय इनका प्रमाण इन शरीरों से अधिक हो जाता है ।
तैजस काययोग
जैन परम्परा में पांच शरीरों का अस्तित्व स्वीकृत है । इनके काययोग सात प्रकार के होते हैं
१. औदारिक काययोग
२०६ • व्रात्य दर्शन
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