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पुंमांसो हुँ वषट्-फट्-धे-स्वाधाप्रभृतिपल्लवाः ।
ते नपुंसकलिंगा स्युर्येषामन्ते नमः पदम् ॥' आग्नेय एवं सौम्य इन दो प्रकार के मंत्रों का भी उल्लेख प्राप्त होता है। पृथ्वी, अग्नि एवं आकाश मंडल (समूह) वाले मंत्र आग्नेय मंत्र कहलाते हैं तथा जल एवं वायु तत्त्व वाले मंत्र सौम्य कहलाते हैं। जिन सौम्य मंत्रों के अन्त में फट् शब्द योजित होता है तो वे आग्नेय मंत्र बन जाते हैं। जिन आग्नेय मंत्रों के अन्त में 'नम' पद जुड़ जाता है तो वे सौम्य मंत्र बन जाते हैं।
आग्नेयाः सौम्या इति, मन्यन्ते ते पुनर्द्विधा मन्त्राः । पृथ्व्यग्नि-वियत्प्राया ये ते मन्त्राः स्युराग्नेयाः ॥ अन्ये सौम्याः सौम्यानेव फडन्तान् वदन्ति चाग्नेयः ।
आग्नेयान्तमेव स्यात् सौम्यत्वं नमोऽन्तत्वे ॥ बीजमंत्र
जिस मंत्र में बीजाक्षर तथा अन्य अक्षर होते हैं किन्तु मंत्र देवता का नाम नहीं होता वह बीजमंत्र कहलाता है। जैसे-‘ओं ऐं ओं' यह बीजमंत्र है।
'ओम्' बीज मंत्र भारत की प्रायः सभी परम्पराओं में मान्य रहा है। प्रणव को योगशास्त्र में ईश्वर का वाचक कहा है। बीजमंत्रों में इसको प्रथम स्थान प्राप्त है। मंत्र संयोजना में प्रायः मंत्रों में ओम् का सन्निवेश किया जाता है। मंत्र व्याकरण में 'ओम्' बीज तेज, भक्ति, विनय, प्रणव, ब्रह्म, प्रदीप, वाम, वेद, कमल, अग्नि, ध्रुव, आकाश आदि संज्ञाओं के नाम से प्रसिद्ध है।
तेजो भक्तिर्विनयः प्रणव ब्रह्मप्रदीपवामाश्च ।
वेदोऽब्जदहनध्रुवमादिद्युभिरोमिति स्यात् ॥ "हीं' बीजमंत्र को माया तत्त्व, शक्ति, लोकेश, त्रिमूर्ति एवं बीजेश के रूप में ख्याति प्राप्त है। यह बहुत शक्तिशाली मंत्र है। ह्रींकार माया बीज अर्थात् शक्ति का बीज है।
ह्रीं का वैशिष्ट्य इसी से परिलक्षित होता है कि इस पर ह्रींकारकल्प जैसे स्वतन्त्र ग्रन्थ निर्मित हुये हैं।
मायातत्वं शक्ति लोकेशो ह्रीं त्रिमूर्तिर्बीजेशः हां, ह्रीं, हूं, हैं, ह्रौं एवं हूं ये बीज शून्य रूप माने जाते हैं।
'ऐं' वाग्बीज अथवा तत्त्व बीज कहलाता है। 'श्रीं' लक्ष्मीबीज के रूप में . १७८ . व्रात्य दर्शन
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