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________________ २०. मंत्र-विचारण भारतीय परम्परा में मंत्र विद्या का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। वैदिक, वौद्ध एवं जैन आदि प्रायः सभी विचारधाराओं में मंत्र शास्त्रों का प्रणयन हुआ है। वैदिक परम्परा में यह माना जाता है कि प्राचीन ऋषियों ने तत्त्व-दर्शन के अभ्यासक्रम के प्रसंग में ब्रह्मा से वेद-विद्या उपलब्ध की थी। ऋषियों के एक अन्य समूह ने विष्णु को प्रसन्न कर उनसे भक्ति विद्या प्राप्त की थी तथा एक अन्य समूह ने शिव को प्रसन्न कर उनसे मंत्र विद्या प्राप्त की थी और उसी परम्परा से वह मंत्र-विद्या वर्तमान तक प्रचलित है। जैन परम्परा के चौदह पूर्वो में एक विद्यानुप्रवाद नाम का पूर्व था। उसमें मंत्र-विद्या का सांगोपाङ्ग वर्णन था। काल प्रवाह में वह ज्ञान राशि विलुप्त हो गयी किंतु उसके अवशेष के रूप में आज भी जैन परम्परा में मंत्र-विद्या का अस्तित्व है तथा मंत्रों के विशिष्ट प्रकार के प्रयोग उपलब्ध हैं। बौद्ध परम्परा में भी मंत्र, तंत्र, विद्या का महत्त्वपूर्ण स्थान है। वज्रयान बौद्ध परम्परा का तो मूल आधार ही मंत्र-तंत्र-विद्या है। वर्तमान में भी इन सभी परम्पराओं में मंत्र के प्रयोग प्रचलित हैं। मंत्र की परिभाषा वर्णमाला के वर्णों की विशिष्ट प्रकार की संरचना मंत्र कहलाती है। निरुक्तकार यास्क ने ‘मंत्रा मननात्' कहकर मंत्र शब्द का निरुक्त किया। जो शब्द, पद अथवा वाक्य पुनः पुनः मनन करने के योग्य होते हैं, उन्हें मंत्र कहा जाता है। मंत्र शब्द की व्युत्पत्ति विभिन्न प्रकार से उपलब्ध होती है। ‘मन्यते ज्ञायते आत्मादेशोऽनेन' इति मंत्रः' जिसके द्वारा आत्मा का आदेश अर्थात् निजानुभव का बोध प्राप्त हो, उसे मंत्र कहते हैं। सम्मान वाचक ‘मन्' धातु से 'त्र' प्रत्यय लगाने पर भी मंत्र शब्द निष्पन्न होता है व्रात्य दर्शन . १७५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003131
Book TitleVratya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages262
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size10 MB
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