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साधना के क्षेत्र में क्रियायोग का महत्त्वपूर्ण स्थान है। समाहित चित्त वाले साधकों के लिए क्रियायोग का प्रयोजन नहीं है ऐसा योगसूत्र का मन्तव्य है किन्तु स्वतः ही समाहितचित्त वाले साधक न्यून ही होते हैं अधिकांशतः व्युत्थित चित्त वाले ही क्रियायोग के द्वारा समाहित चित्त की भूमिका पर आरूढ़ होकर समाधि को प्राप्त करते हैं। क्रियायोग बहुजनहिताय साधना का प्रयोग है। इस क्रियायोग की सम्यक् अनुपालना से साधक साधना के अभिनव सोपानों का आरोहण करने में समर्थ हो जाता है और अन्ततोगत्वा समाधि की उत्कृष्ट स्थिति को प्राप्त कर लेता है।
१७४ - व्रात्य दर्शन
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