________________
जातिवादी ‘दोनों कारणों की उपपत्ति' अर्थात् कृतकत्व हेतु से अनित्यत्व एवं निरवयवत्व हेतु से नित्यत्व की युक्ति संगता से उपपत्ति समदोष की उद्भावना करता है किंतु यह उचित नहीं है क्योंकि कार्यत्व हेतु से अनित्यता सिद्ध है अतः उसका प्रतिषेध नहीं हो सकता तथा यदि वह प्रतिषिद्ध होती है तो 'उभयकारणोपपत्ति नहीं बनेगी। 'उभयकारणोपपत्ति' से आप अनित्यत्व की उपपत्ति स्वीकार करते ही है, अतः इस स्वीकृति से अनित्यता का प्रतिषेध नहीं हो सकता अतः उपपत्तिसम जाति बन ही नहीं सकती। कृतकत्व हेतु अव्यभिचारी है, उससे अनित्यता सिद्ध होती है जबकि निरवयवत्व हेतु व्यभिचारी है उससे नित्यता सिद्ध हो सकती।
इस जाति का साधर्म्यसम एवं वैधर्म्यसम से नाममात्र का अन्तर है अतः भासर्वज्ञ ने इस जाति का उल्लेख नहीं किया है।
उपलब्धिसमा जाति का समाधान करते हुए सूत्रकार कह रहे है कि 'कारणान्तरादपि तद्धर्मोपपत्तेरप्रतिषेधः' अर्थात् शब्द के अनित्यत्व के प्रसंग में कृतकत्व हेतु से अनित्यता बतलायी गयी है न कि कार्य कारण का नियम बतलाया गया यदि वहां कृतकत्व हेतु भिन्न किसी अन्य हेतु से अनित्यता सिद्ध हो जाये तब कृतकत्व हेतु का प्रतिषेध करने से क्या प्रयोजन? चाहे अन्य हेतु से ही सही साध्य तो सिद्ध हो ही गया अतः उपलब्धिसमा जाति उपस्थित करना व्यर्थ है।
२१ अनुपलब्धि के द्वारा खण्डन करना अनुपलब्धिसमा जाति है वादी के द्वारा यह कहे जाने पर कि शब्द अनित्य है क्योंकि वह प्रयत्नजन्य है तब जातिवादी कहता है-शब्द प्रयत्न का कार्य नहीं है क्योंकि उच्चारण से पहले भी वह रहता है किन्तु आवरण के कारण प्रतीति में नहीं आता। यदि यह कहा जाए कि आवरण प्रतीति में आता नहीं अतः आवरण है ही नहीं, अतः शब्द का उच्चारण से पूर्व प्रतीति में न आना यह सिद्ध करता है कि उच्चारण से पूर्व शब्द है ही नहीं तो यह कथन ठीक नहीं है, क्योंकि आवरण की अनुपलब्धि में भी अनुपलब्धि का अस्तित्व तो है ही और आवरण की अनुपलब्धि का न मिलना यह बताता है कि आवरण की अनुपलब्धि का अभाव है और आवरण की अनुपलब्धि का अभाव होने का अर्थ है कि आवरण की उपलब्धि का सद्भाव है अतः यह कहा जा सकता है कि जिस प्रकार मिट्टी में छिपी हई जड़े, कील, जल इत्यादि दिखाई नहीं देते उसी प्रकार आवरण के अस्तित्व के कारण उच्चारण से पूर्व शब्द का ग्रहण नहीं होता और इसलिए प्रयत्नजन्य नहीं होने के कारण शब्द नित्य है।
१५६ . व्रात्य दर्शन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org