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वा संशयेऽत्यन्तसंशयप्रसंगो नित्यत्वानभ्युपगमाच्च सामान्यस्याप्रतिषेधः (न्यायसूत्र ५/१/१५) इस सूत्र द्वारा किया है। किसी साधर्म्य के कारण संशय होने पर वैधर्म्य के द्वारा संशय की निवृत्ति हो जाती है। साधर्म्य तथा वैधर्म्य दोनों से ही संशय मानने पर अत्यन्त संशय होगा और उसकी निवृत्ति नहीं होगी तथा सामान्य सर्वदा संशय का कारण नहीं होता अर्थात् विशेष दर्शनकाल में सामान्य दर्शन संशय का कारण नहीं होता है अन्यथा सिर, हाथ, पांव आदि विशेष दर्शन काल में ऊर्ध्वता आदि धर्म पुरुष में संशय के कारण हो जायेंगे किन्तु ऐसा होता नहीं है। तात्पर्य यह है कि सामान्यधर्म दर्शन से संशय तभी तक होता है जब तक विशेष दर्शन न हो। जब पुरुष में व्याप्त सिर, हाथ आदि विशेष का दर्शन हो जाने पर ऊर्ध्वता आदि सामान्य सामग्री संशय को जन्म नहीं दे सकती। प्रस्तुत अनुमान में कृतकत्व हेतु विशेष दर्शन है अतः उसके सद्भाव में शब्द कृतक होने से घट की तरह अनित्य है अथवा निरवयव होने से आकाश की तरह नित्य है इस संशय का उत्थान ही नहीं हो सकता।
१५ दूसरे अर्थात् प्रतिपक्षी पक्ष को उपस्थित करने वाली बुद्धि के द्वारा प्रयुक्त वही साधर्म्यसमा अथवा वैधर्म्यसमा जाति प्रकरणसमा हो जाती है। वहीं पर अर्थात् उसी अनुमान वाक्य में शब्द अनित्य है कृतक होने से घट की तरह ऐसा वादी के द्वारा प्रयोग करने पर जातिवादी कहता है, शब्द नित्य है क्योंकि वह श्रावण-सुना जाता है जैसे-शब्दत्व। प्रकटीकरण के प्रकार का भेद मात्र होने से इस जाति को भिन्न कहा गया है।
प्रकरणसमा जाति में जातिवादी एक नये पक्ष को उपस्थित करके साधन का खण्डन करता है। वादी कृतकत्व हेतु के द्वारा शब्द की अनित्यता सिद्ध करता है और उसके समर्थन में घट का दृष्टान्त देता है। वादी का यह अनुमान निर्दुष्ट है फिर भी प्रतिवादी उसे निराकृत करने का प्रयत्न करता है। वादी ने शब्द विशेष को साध्य बनाकर कृतकत्व हेतु से अनित्यता सिद्ध की है। प्रतिवादी शब्द के सामान्य और विशेष इन दो रूपों में से शब्द के सामान्य रूप को सामने रखकर नया पक्ष स्थापित कर देता है। अपने अनुमान को प्रस्तुत करते हुए वह कहता है कि शब्द नित्य है क्योंकि सुनाई देता है। जैसे-शब्दत्व। शब्दत्व सामान्य है। सामान्य नित्य होता है इस कारण शब्द भी नित्य होगा।
१६ हेतु की त्रैकालिक अनुपपत्ति के द्वारा खण्डन करना अहेतुसमा जाति है। हेतु अर्थात् साधन। वह साधन साध्य से पहले होता है, या साध्य के पश्चात् होता है अथवा साध्य के साथ ही होता है? यदि वह साधन साध्य से पहले होता
१५२ . व्रात्य दर्शन
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