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है तथा जैसे वह घट का धर्म है वैसे शब्द का धर्म नहीं है अर्थात् शब्द का कृतकत्व अन्य प्रकार का है तथा घट का कृतकत्व अन्य प्रकार का है। शब्द अन्य प्रकार से उत्पन्न है तथा घट अन्य प्रकार से उत्पन्न होता है 1
समान धर्म वाले अन्य पदार्थ के धर्म के भेद से खण्डन करना विकल्पसमा जाति है, जैसे कोई-कोई कृतक पदार्थ मृदु देखा जाता है, जैसे मृगचर्म की शय्या । कोई-कोई कृतक पदार्थ कठोर देखे जाते हैं, जैसे कुठार आदि, वैसे ही कोई कृतक पदार्थ अनित्य होंगे, घट आदि । कोई कृतक पदार्थ नित्य होंगे, जैसे शब्द आदि ।
७ समान धर्म वाले पदार्थों में विद्यमान धर्मभेद के साम्य से प्रकृत में भी धर्मभेद मानकर अनिष्ट धर्म का आपादन करना विकल्पसमा जाति है । जैसे- बुद्धि, पट और घट तीनों कृतक हैं परन्तु जैसे बुद्धि अमूर्त है, पट मूर्त, घट कठिन। इस तरह कृतक पदार्थों में धर्मभेद अनुभव सिद्ध है । इसी प्रकार घट की तरह शब्द के कृतक होने पर भी उनमें नित्यत्व एवं अनित्यत्व अवान्तर धर्मभेद मानकर शब्द में कृतकत्व के अवान्तर धर्म नित्यत्व का आपादन विकल्पसमा जाति है ।
साध्य के साथ समानता दिखलाकर निरास करना साध्यसमा जाति है। यथा-यदि जैसा घट है वैसा ही शब्द है, तब तो इसका अर्थ हुआ जैसा शब्द है वैसा ही घट है और शब्द जब साध्य है तब घट को भी साध्य होना चाहिए अर्थात् घट एवं शब्द को सदृश बताकर एक के साध्य होने से दूसरों को भी साध्य बताना साध्यसमा जाति है। जबकि दोनों को एकत्र साध्य बनाना काम्य नहीं है। जब दोनों ही साध्य हैं तब एक साध्य दूसरे साध्य का दृष्टान्त नहीं हो सकता। यदि ऐसा नहीं है तब दोनों एक दूसरे से विलक्षण होने के कारण घट का अदृष्टांत होना ही यौक्तिक है अर्थात् घट रूप दृष्टांत शब्द से विलक्षण होने के कारण शब्द की अनित्यता सिद्ध में दृष्टान्त नहीं बन सकता ।
जाति समाधान
उत्कर्षसम, अपकर्षसम, वर्ण्यसम, अवर्ण्यसम, विकल्पसम एवं साध्य सम इन छहों जातियों का प्रयोग जातिवादी साध्य एवं दृष्टान्त के आधार पर करता है अतः न्यायसूत्रकार ने एक ही सूत्र से इन छहों का निराकरण किया है- 'किंचित्साधर्म्यादुपसंहारसिद्धेवैधर्म्यादप्रतिषेधः ( न्यायसूत्र ५ / १/६)
१४८ • व्रात्य दर्शन
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