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________________ १७. जात्युत्तर एवं उसका समाधान साधन में विद्यमान असिद्ध, विरुद्ध आदि दोषों का प्रकटीकरण दूषण कहलाता है, जैसा कि प्रमाण -मीमांसा में आचार्य हेमचन्द्र ने दूषण को परिभाषित करते हुए कहा - 'साधनदोषोद्भावनं दूषणं ।' अनुमान में कोई दोष नहीं है फिर भी अविद्यमान दोषों का प्रकाशन करना दूषणाभास कहलाता है । जिसको आचार्य हेमचन्द्र ने जात्युत्तर भी कहा है । अभूतदोषोद्भावनानि दूषणाभासा जात्युत्तराणि । जात्युत्तर को संक्षेप में जाति भी कहा जाता है 1 असद् उत्तर को जाति कहा जाता है । न्याय के क्षेत्र में दूषणाभासों अर्थात् जाति की विशद् चर्चा उपलब्ध होती है । दूषण एवं दूषणाभासों के निरूपण का प्राथमिक श्रेय गौतम की न्याय सूत्र परम्परा को है । वैदिक ग्रंथों में ही इनका सबसे प्राचीन उल्लेख मिलता है। बौद्ध साहित्य में इनका प्रवेश वैदिक ग्रंथों एवं वैदिक विद्वानों के साथ संपर्क होने से ही हुआ है। जैन परम्परा में तो इनका प्रवेश बहुत बाद में हुआ । बौद्ध के साथ वाद, चर्चा के दौरान ही ( इनका ) जाति आदि का जैनन्याय के साहित्य में प्रवेश हुआ है। जैन परम्परा में सिद्धसेन के न्यायावतार में जाति का प्रथम उल्लेख प्राप्त होता है, तत्पश्चात् तो अधिकांश जैन तार्किकों के ग्रंथों में इनका उल्लेख हुआ है । 1 उपालम्भ, प्रतिषेध, दूषण, खण्डन, उत्तर इत्यादि परस्पर पर्यायवाची शब्द हैं । दूपण अर्थ में इनका प्रयोग हुआ है । विभिन्न दार्शनिकों ने एक ही अर्थ में इन विभिन्न शब्दों का प्रयोग किया है। उपालम्भ, प्रतिषेध आदि शब्द न्याय - सूत्र में प्रयुक्त हुए हैं। दूषण आदि शब्दों का प्रयोग इनके भाष्य में हुआ है। बौद्ध साहित्य में खण्डन एवं दूषण शब्द का प्रयोग हुआ है। जैन साहित्य में भिन्न-भिन्न ग्रंथों में उपालम्भ, दूषण आदि सभी शब्दों के प्रयोग उपलब्ध होते हैं । व्रात्य दर्शन १४३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003131
Book TitleVratya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages262
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size10 MB
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