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दृष्टांत के बोधक वाक्य को उदाहरण कहा जाता है। भासर्वज्ञ ने दृष्टांत के सम्यक् अभिधान को उदाहरण कहा है जबकि हेमचन्द्राचार्य आदि ने दृष्टांत वचन को ही उदाहरण कहा है। उन्होंने सम्यक् शब्द का प्रयोग नहीं किया है। भासर्वज्ञ ने सम्यक् पद का सलक्ष्य प्रयोग किया है। सम्यक् पद से यहां नियत अविनाभाव ही अभिप्रेत है अतः नियत अविनाभाव से युक्त दृष्टांत के कथन को ही उदाहरण कहा जा सकता है अन्य को नहीं।
'सम्यग्दृष्टांतवचनमुदाहरणम्' इस उदाहरण लक्षण में सम्यक्पद उदाहरणाभासों की व्यावृति के लिए ही प्रयुक्त किया गया है।
दृष्टांत और उदाहरण में वाच्यवाचक भाव सम्बन्ध होता है इसीलिए दृष्टांत वचन को उदाहरण कहा जाता है। दोषों का आरोपण दृष्टांत में ही होता है, इसलिए उदाहरणाभास भी वस्तुतः दृष्टांताभास ही है। तर्कशास्त्र में उदाहरणाभास तथा दृष्टांताभास दोनों ही नाम प्रचलित हैं। आचार्य हेमचन्द्र ने दृष्टान्ताभास का प्रयोग किया है। उन्होंने अपने मन्तव्य को स्पष्ट करते हुए कहा है कि परार्थानुमान का प्रसंग होने से उदाहरण के दोष दृष्टान्त से उत्पन्न होते हैं अतः उन्हें दृष्टान्त दोष कहना उचित है।
न्यायसार में भासर्वज्ञ ने उदाहरणाभास का लक्षण देते हुए कहा है कि-'उदाहरणलक्षणरहिताः उदाहरणवदवभासमाना उदाहरणाभासाः' जो उदाहरण के लक्षण से रहित होते हैं किंतु उदाहरण जैसे प्रतीत होते हैं उन्हें उदाहरणाभास, दृष्टान्ताभास अथवा निदर्शनाभास कहते हैं। जिस प्रकार साधर्म्य एवं वैधर्म्य के भेद से दृष्टान्त के दो प्रकार हैं वैसे ही दृष्टान्ताभास भी दो प्रकार का है तथा इनके अवान्तर भेद अनेक होते हैं।
परार्थ अनुमान के प्रसंग में हेत्वाभास का निरूपण बहुत प्राचीन है। हेत्वाभास का विशद वर्णन कणादसूत्र एवं न्यायसूत्र दोनों में उपलब्ध है किंतु उदाहरणाभास का उल्लेख हेत्वाभास जितना प्राचीन नहीं है क्योंकि न्यायसूत्र, न्यायभाष्य तथा न्यायवार्तिक में उदाहरणाभासों का उल्लेख उपलब्ध नहीं है। प्रशस्तपाद के वैशेषिक भाष्य में दृष्टांताभास की चर्चा उपलब्ध है। उन्होंने इसके लिए निदर्शन शब्द का प्रयोग किया है। यद्यपि उन्होंने निदर्शनाभास सामान्य का पृथक् से कोई लक्षण नहीं दिया है किंतु उनके 'अनेन निदर्शनाभासा निरस्ता भवन्ति' इस वाक्य में निदर्शनाभास का उल्लेख हुआ है।
दृष्टांताभासों की संख्या विभिन्न आचार्यों ने अलग-अलग स्वीकार की है। दिङ्नागकृत न्याय प्रवेश में पांच साधर्म्य और पांच वैधर्म्य ऐसे दस दृष्टान्ताभासों
व्रात्य दर्शन • १३७
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