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१५. अनुमान में प्रयुक्त उदाहरण की अयथार्थता
भारतीय प्रमाण मीमांसा में अनुमान प्रमाण का महत्त्वपूर्ण स्थान है। अनुमान के पांच अवयव होते हैं-प्रतिज्ञा, हेतु, दृष्टान्त, उपनय एवं निगमन। प्रस्तुत निबंध में अनुमान के तीसरे अवयव दृष्टान्त की चर्चा की जा रही है। लोक व्यवहार को जानने वाले तथा शास्त्र में निपुण लोग जिस विषय में एकमत हो, वह दृष्टान्त कहलाता है। जैसा कि न्याय सूत्र में कहा है- 'लौकिकपरीक्षकाणां यस्मिन्नर्थे बुद्धिसाम्यं स दृष्टान्तः (१/१/२५) इसका तात्पर्य यह है कि लौकिक पुरुष जिस अर्थ को जिस रूप में जानते हैं यदि परीक्षक पुरुष भी उसको वैसा ही स्वीकार करें तो वह दृष्टान्त माना जाता है। केशव मिश्र के अनुसार जिस अर्थ में वादी एवं प्रतिवादी की सहमति है वह दृष्टांत कहलाता है
'वादीप्रतिवादिनो संप्रतिपतिविषयोऽर्थो दृष्टान्तः।'
सर्वदर्शनसंग्रहकार के अनुसार जिसके आधार पर व्याप्ति सम्बन्ध का ज्ञान होता है वह दृष्टान्त कहलाता है।
दृष्टान्त दो प्रकार के होते हैं-साधर्म्य एवं वैधर्म्य। इनको क्रमशः अन्वय एवं व्यतिरेक दृष्टांत भी कहा जाता है। साध्य के साथ, समानधर्मता से, जिस अधिकरण में, साध्य का धर्म अर्थात् साधन रहता हो, उसे साधर्म्य दृष्टांत तथा उसके कथन को साधर्म्य उदाहरण कहा जाता है। साध्य के साथ, विरुद्ध-धर्मता से, जिस अधिकरण में साध्य के धर्म अर्थात् साधन का अभाव हो वह वैधर्म्य दृष्टांत तथा उसके कथन को वैधर्म्य उदाहरण कहा जाता है। धूम के द्वारा पर्वत में अग्नि के सद्भाव को सिद्ध करने में पाकशाला साधर्म्य दृष्टांत है एवं जलाशय वैधर्म्य दृष्टांत है। सारांश यह है कि साध्य-साधनभाव रूप अन्वय व्याप्ति का प्रतिपादन होने से साधर्म्य दृष्टांत को अन्वय दृष्टांत तथा साध्याभाव-साधनाभाव रूप व्यतिरेक व्याप्ति के प्रतिपादक वैधर्म्य दृष्टांत को व्यतिरेक दृष्टांत कहते हैं।
१३६ . व्रात्य दर्शन
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