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________________ चतुष्कोटि विनिर्मुक्त है। जैसा कि माध्यमिक कारिका में कहा गया न सन् नासन् न सदसन्न चाप्यनुभयात्मकम्। चतुष्कोटिनिर्मुक्तं, तत्त्वं माध्यमिकाः विदुः ॥ माध्यमिक मत के अनुसार सत् दो प्रकार का है१. संवृत्ति सत् (अविद्याजनित व्यावहारिक सत्ता) २. पारमार्थिक सत् (प्रज्ञाजनित सत्य) आर्य नागार्जुन का अभिमत है कि भगवान बुद्ध ने इन दो सत्यों को लक्ष्य करके ही धर्म का उपदेश दिया था ढे सत्ये समुपाश्रित्य बुद्धानां धर्मदेशना। लोकसंवृत्तिसत्यं च सत्यं च परमार्थतः ॥ सांवृतिक सत्य वह है जो संवृत्ति के द्वारा उत्पन्न हो। संवृति शब्द की व्याख्या कई प्रकार से की जाती है उसका एक अर्थ है-अविद्या । जो सत्य के ऊपर आवरण डाल देती है। 'संवियत आवियते यथाभूतपरिज्ञानं स्वभावावरणाद् आवृतप्रकाशनाच्चानयति संवृतिः' अविद्या, मोह तथा विपर्यास संवृति के ही पर्यायवाची नाम अविद्या या मोह के द्वारा उत्पादित काल्पनिक सत्य को सांवृतिक सत्य कहा जाता है। यह सत्य दो प्रकार का है १. लोकसंवृति तथा २. अलोक संवृति। लोकसंवृति वह है जिसे साधारण जनमानस सत्य मानकर व्यवहार करता है, जैसे घट, पट आदि पदार्थ। अलोक संवृति उसे कहते हैं जिसे कुछ व्यक्ति ही ग्रहण कर सकते हैं जैसे शंख का पीत रंग। प्रज्ञाकरमति ने लोकसंवृति को तथ्यसंवृति एवं अलोकसंवृति को मिथ्यासंवृति की संज्ञा दी है। लोकदृष्टि से प्रथम संवृति सत्य एवं दूसरी प्रकार की संवृति असत्य है किन्तु परमार्थ रूप से तो दोनों ही असत्य हैं। परमार्थ सत्-परमार्थ सत्य संवृति सत् से सर्वथा भिन्न होता है। वस्तु का अकृत्रिम स्वरूप ही परमार्थ है। उस सत् का ज्ञान होने से संवृतिजन्य क्लेशों का नाश हो जाता है। परमार्थ सत् अवाच्य है। शून्यता, तथता, भूतकोटि और धर्मधातु ये पर्यायवाची हैं। परमार्थ सत् अवक्तव्य है उसका कथन नहीं किया जा सकता। परम तत्त्व न तो वाणी का विषय है न चित्त का। वाक् और मन-दोनों ही उस तत्त्व तक नहीं पहुंच सकते अतः वह अचिंत्य एवं अवाच्य है। उस तत्त्व की मात्र अनुभूति की जा सकती व्रात्य दर्शन - १२७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003131
Book TitleVratya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages262
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size10 MB
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