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________________ योगाचार योगाचार के अनुसार विज्ञान ही एकमात्र परमार्थ सत् है। बाह्य पदार्थ की सत्ता ही नहीं है। चित्त को छोड़कर अन्य कोई भी पदार्थ मृग-मरीचिका के समान निःस्वभाव तथा स्वप्न के समान निरुपाख्य है। जिसे बाह्य पदार्थ कहा जाता है उनका विश्लेषण करें तो वहां आंख से देखे गये रंग-आकार हाथ से स्पर्श किये गये रुक्षता-स्निग्धता आदि गुण ही मिलते हैं इसके अतिरिक्त किसी वस्तु का ज्ञान नहीं होता है। विज्ञान ही वास्तविक है। लंकावतारसूत्र में कहा है चित्तं वर्तते चित्तं चित्तमेव विमुच्यते। चित्तं हि जायते चित्तं नान्याच्चित्तमेव निरुध्यते ॥ चित्त की ही प्रवृत्ति होती है और चित्त की ही विमुक्ति होती है। चित्त को छोड़कर दूसरी वस्तु न तो उत्पन्न होती है न ही उसका नाश होता है चित्त ही एकमात्र तत्त्व है। इस जगत् में न तो भाव पदार्थ विद्यमान न ही अभाव । चित्त के अतिरिक्त कोई अन्य पदार्थ सत् नहीं। बाह्य दृश्य जगत् का अस्तित्व ही नहीं है। चित्त एकाकार है तथा वही इस जगत् में विचित्र रूपों में दिखाई देता है दृश्यते न विद्यते बाह्यं, चित्तं चित्रं हि दृश्यते। देहयोगप्रतिष्ठानं चित्तमात्रं वदाम्यहम् ॥ चित्त ही कभी देह रूप में और कभी उपयोग की वस्तुओं के रूप में प्रतिष्ठत रहता है, अतः चित्त की ही वास्तविक सत्ता है। जगत् उस चित्त का ही परिणमन है। यह सम्पूर्ण जगत् को विज्ञानमय मानता है, अतः यह विज्ञानाद्वैतवादी है। सत्तास्वरूप विमर्श विज्ञानाद्वैतवादी बौद्ध पारमार्थिक एवं व्यावहारिक के भेद से सत्ता को दो प्रकार की मानते हैं। व्यावहारिक सत्ता पुनः दो भागों में विभक्त हैं-१. परिकल्पित सत्ता और २. परतन्त्र सत्ता। परमार्थ को परिनिष्पन्न सत्ता कहा जाता है। इनके अनुसार सत्ता के तीन रूप बन जाते हैं १. परिनिष्पन्न सत्ता (परमार्थ, वास्तविक) २. परिकल्पित सत्ता (व्यावहारिक) ३. परतन्त्र सत्ता (व्यावहारिक) व्यावहारिक सत्ता को संवृत्ति सत् भी कहा जाता है। विज्ञानवाद के अनुसार व्रात्य दर्शन • १२५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003131
Book TitleVratya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages262
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size10 MB
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