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________________ सामने जाकर कहे, व्रात्य! आप कहां रहते हैं? व्रात्य (यह) जल (ग्रहण कीजिए।) व्रात्य (मेरे घर के लोग आपको भोजन आदि से) तृप्त करें। जैसा आपको प्रिय हो, जैसी आपकी इच्छा हो, जैसी आपकी अभिलाषा हो, वैसा ही हो अर्थात् हम वैसा ही करें। तद् यस्यैवं विद्वान् व्रात्योऽतिथिगुहानागच्छेत् स्वयमेनमभ्युदेत्य ब्रूयाद् व्रात्य क्वाऽवात्सीः व्रात्योदक व्रात्य तर्पयन्तु व्रात्य यथा ते प्रियं तथास्तु व्रात्य यथा ते वशस्तथास्तु व्रात्य यथा ते निकामस्तथास्त्विति अथर्ववेद १५/२/११/१, २ 'जिसके घर में विद्वान व्रात्य एक रात अतिथि रहे, वह पृथ्वी में जितने पुण्य-लोक हैं उन सबको वश में कर लेता है।' तद् यस्यैवं विद्वान् व्रात्य एकां रात्रिमतिथिगृहे वसति ये पृथिव्यां पुण्या लोकास्तानेव तेनावरुन्द्धे ___ अथर्ववेद १५/२/१३/१, २ व्रात्यकाण्ड में प्रतिपादित सूत्रों की विषय वस्तु से भगवान् ऋषभ के जीवनवृत की तुलना होती है। वे दीक्षित होने के बाद एक वर्ष तक तपस्या में स्थिर रहे थे। एक वर्ष तक भोजन न करने पर भी शरीर में पुष्टि और दीप्ति को धारण किये हुए थे। मुनिचर्या को धारण करने वाले भगवान जहां-जहां जाते थे, वहां के लोग प्रसन्न होकर और बड़े संभ्रम के साथ आकर उन्हें प्रणाम करते थे। उनमें से कितने ही लोग कहने लगते थे-हे देव! प्रसन्न होइये और कहिये कि क्या काम है? भगवान ऋषभ अन्त में अपुनरावृत्ति स्थान को प्राप्त हुये, जहां जाने के पश्चात् कोई लौट कर नहीं आता। इन सब समानताओं के आधार पर यह बहुत सम्भव है कि व्रात्यकाण्ड में भगवान ऋषभ का जीवन रूपक की भाषा में चित्रित है। ऋषभ के प्रति कुछ वैदिक ऋषि श्रद्धावान् थे और वे उन्हें देवाधिदेव के रूप में मान्य करते थे। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का यह अभिमत निश्चित रूप से मननीय है, जो व्रात्य के सम्बन्ध में एक नयी अवधारणा प्रस्तुत कर रहा है। संस्कृत-व्याकरण के नियमानुसार व्रात एवं व्रत इन दो शब्दों से व्रात्य शब्द Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003131
Book TitleVratya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages262
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size10 MB
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