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________________ के लिए शरीर-रचना विज्ञान (एनाटोमी) का ज्ञान आवश्यक होता है। शरीर वैज्ञानिकों ने शरीर के सूक्ष्म से सूक्ष्म अंश को भी ज्ञात करने का प्रयत्न किया है तथा उसमें सफलता भी प्राप्त की है। शरीर-शास्त्रियों ने शरीर के रहस्यों का अवबोध तो प्राप्त किया है एवं कर रहे हैं किन्तु शरीर का ऐसा निर्माण क्यों होता है? किसने किया है? इन प्रश्नों का उत्तर उनके पास नहीं है, वे मात्र घटक तत्त्वों तक ही पहुंचे हैं किन्तु अध्यात्म-विज्ञान ने इन रहस्यों को भी अनावृत किया है। कर्मवाद का सिद्धान्त इस समस्या का समाधान प्रस्तुत करता है। शरीर-विज्ञान की विशेष अवगति का उपक्रम इन तीन सौ-चार सौ वर्षों से ही विज्ञान के क्षेत्र में चल रहा है, किन्तु अध्यात्म के आचार्यों ने हजारों वर्ष पूर्व ही शरीर-निर्माण के हेतु का उल्लेख कर्मवाद के सिद्धान्त के रूप में प्रस्तुत किया। जैन कर्मवाद में ज्ञानावरण आदि आठ कर्म स्वीकृत किये गये हैं। प्रत्येक कर्म के पृथक्-पृथक् कार्य का निर्धारण भी वहां पर है। शरीर-रचना का मुख्य हेतु 'नाम कर्म' को माना गया है। नाम कर्म को चित्रकार की उपमा से उपमित किया गया है जैसे चित्रकार अपनी कल्पना की उपज से नये-नये चित्रों का निर्माण करता है, वैसे ही कर्म शरीर, संस्थान की संरचना को अनेक रूप देता है। कर्मशास्त्र में नाम कर्म के अनेक भेद-प्रभेद किये गये हैं एवं उनके द्वारा विभिन्न प्रकार के शरीर संबंधी कार्य सम्पादित होते हैं। - जैसे गति नाम कर्म के प्रभाव से जीव, मनुष्य, तिर्यंच आदि गतियों में जाता है, जाति नाम कर्म के उदय से जीव को आंख, कान, आदि इन्द्रियों की प्राप्ति होती है। शरीर नाम कर्म से औदारिक आदि शरीर की प्राप्ति होती है। आज शरीरशास्त्री मानते हैं कि ग्रन्थियों के अमुक-अमुक प्रकार के स्राव से व्यक्ति का रंग सफेद, काला आदि होता है। कर्म के अनुसार वर्णनामकर्म शरीर के विविध वर्णों का निर्धारण करता है, अर्थात् इसी कर्म के कारण शरीर के कृष्ण और गौर आदि रंग होते हैं। श्वासोच्छ्वास की क्रिया विज्ञान मानता है, वह क्रिया श्वसन-तन्त्र के द्वारा होती है। कर्म के अनुसार उच्छवास नाम कर्म श्वासोच्छ्वास की क्रिया का हेतु है। कर्म ग्रन्थों में नाम कर्म के बयालीस, सड़सठ, तिरानवें याएक सौ तीन भेद उपलब्ध होते हैं। नाम कर्म की प्रकृतियां, उनके अवान्तर भेदों एवं उनके स्वरूप के विस्तृत विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि इनमें जीव की शरीरगत वैचित्र्य की सम्पूर्ण विशेषताएं समाविष्ट हैं। शरीर के घटक तत्त्व कौन से हैं? शरीर के सूक्ष्म, स्थूल आदि प्रकार, उसकी १०० . व्रात्य दर्शन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003131
Book TitleVratya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages262
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size10 MB
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