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________________ ११. शरीरविज्ञान और कर्म विज्ञान प्रकृति के रहस्यों को अनावृत करता जा रहा है। आज वैज्ञानिक विकास ने अनेक उद्घाटित सत्यों को प्रस्तुत किया है। हर क्षेत्र में विज्ञान के विकास का स्वर मुखरित हो रहा है। व्यक्ति आदिकाल से ही अपने बारे में जानने को लालायित रहा है। स्वयं की अवगति की जिज्ञासा ने व्यक्ति के सामने दो दिशाएं प्रस्तुत की। एक दिशा से व्यक्ति अध्यात्मोन्मुखी बना। वह आत्मा, कर्म, पुनर्जन्म आदि रहस्यों को समझने का प्रयत्न करता रहा। फलस्वरूप अध्यात्म जगत् में साधना के विभिन्न प्रयोगों से अज्ञात जगत् ज्ञेय बनने लगा किन्तु यह अन्वेषण मुख्य रूप से वैयक्तिक था अर्थात् मात्र व्यक्तिगत अनुभवों पर ही आधारित था। बाह्य जगत् में उन अनुभवों पर वस्तुपरक प्रयोग नहीं हो सकते थे। दूसरी ओर विज्ञान मात्र बाह्यज्ञान एवं बाह्यप्रयोग पर आधारित होकर वस्तु सत्य को प्राप्त करने का प्रयत्न करने लगा। फलस्वरूप बाह्य जगत् का प्रामाणिक, वस्तुपरक ज्ञान विज्ञान ने प्रस्तुत किया। स्वज्ञप्ति की जिज्ञासा ने शरीर को विषय बनाया एवं शरीर से सम्बन्धित अनेक अज्ञात तथ्य को इस अन्वेषण ने उद्घाटित किया। आज शरीर के बारे में इतनी अधिक अवगति शरीर वैज्ञानिकों ने प्राप्त की है कि जिसकी पूर्व में कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। कोशिका जैसे शरीर के सूक्ष्मतम अंश की भी कार्यप्रणाली ज्ञात की है। जैनेटिक विज्ञान का प्रादुर्भाव शरीर-विज्ञान के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण प्रयोग है। शरीर के विभिन्न अवयवों की कार्य-प्रणाली के अध्ययन को शरीर-क्रिया विज्ञान (ह्यूमन फिजीओलॉजी) कहते हैं। इस विज्ञान द्वारा मनुष्य के शरीर के भिन्न-भिन्न अवयवों के कार्यों और उन कार्यों के होने के कारणों के साथ-साथ उनसे सम्बन्धित चिकित्सा-शास्त्र के नियमों का भी ज्ञान होता है। कान सुनने का कार्य करते हैं, आंखे देखने का काम करती हैं। शरीर-क्रिया विज्ञान की अवगति व्रात्य दर्शन • ६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003131
Book TitleVratya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages262
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size10 MB
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