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तो कर्मशास्त्रीय एवं मानस-शास्त्रीय चिन्तन एक धारा में प्रवाहित होता दृष्टिगोचर होता है। कर्मशास्त्र के अनुसार मोहनीय कर्म की अठाईस प्रकृतियां हैं और उसके उतने ही विपाक हैं। मूल प्रवृत्तियों एवं संवेगों के साथ इनकी तुलना की जा सकती
मनोविज्ञान का सिद्धान्त है कि संवेग के उद्दीपन से व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है। कर्मशास्त्र के अनुसार मोहनीय कर्म के विपाक से व्यक्ति का चारित्र और व्यवहार बदलता है।
सत्य में कोई द्वैत नहीं होता। जो सूक्ष्म रहस्य धार्मिक व्याख्याग्रन्थों में अव्याख्यात हैं अथवा जिनकी व्याख्या के स्रोत उपलब्ध नहीं है, उनकी व्याख्या वैज्ञानिक शोधों के सन्दर्भ में प्रामाणिकता से की जा सकती है। दर्शन और विज्ञान की सम्बन्धित शाखाओं का तुलनात्मक अध्ययन बहुत अपेक्षित है। ऐसा होने पर दर्शन के अनेक नये आयाम उद्घाटित हो सकते हैं। संदर्भ
१. सामान्य मनोविज्ञान की रूपरेखा, पृ. ४७८ २. जैन सिद्धान्त दीपिका २/४२ कर्मण उदयविलयजनितः चेतनापरिणामो भावः । ३. वही, वृ. २/४२ ४. तत्वार्थ सूत्र २/१ औपशमिकक्षायिकौ भावौ मिश्रश्च जीवस्य स्वतत्व
मौदयिकपारिणामिकौ च।
६८. व्रात्य दर्शन
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