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१. उत्साही चित्त प्रकृति । २. श्लेष्मिक चित्त प्रकृति । ३. विषादी चित्त प्रकृति ।
४. कोपशील चित्त प्रकृति ।
जैव भौतिक प्रकार के व्यक्तित्व सम्बन्धी परिभाषाओं के सन्दर्भ में क्रेत्समर और शैल्डन ने भी विचार किया है। क्रेत्समर ने शारीरिक संरचना और चित्त-प्रकृति को सम्मुख रखकर चार प्रकार के व्यक्तित्व का उल्लेख किया है
कृशकाय, पुष्टकाय, तुन्दिल और मिश्रकाय ।
शैल्डन ने शरीर की बनावट के आधार पर तीन प्रकार के व्यक्तित्व बताये
१. गोलाकार, २. आयताकार, ३. लम्बाकार
शैल्डन के अनुसार व्यक्तियों को शरीर की बनावट के अनुसार इन तीन वर्गों में रखा जा सकता है । गोलाकार व्यक्तित्व वाले अच्छा भोजन करना चाहते हैं और अत्यधिक आराम पसन्द होते हैं। आयताकार व्यक्तित्व वाले लोग कार्य प्रधान होते हैं । ऐसे व्यक्तित्व में शारीरिक शक्ति एवं गति की प्रधानता होती है । इनमें साहस अधिक होता है और श्रम करने के लिए तत्पर रहते हैं । लम्बाकार व्यक्तित्व वाले सेरेब्रोटोनिक अथवा प्रमस्तिष्क प्रधान होते हैं । इस प्रकार के व्यक्ति बौद्धिक एवं मानसिक कार्यों में अधिक रुचि रखते हैं और अपनी विद्वता के लिए प्रसिद्धि प्राप्त करते हैं । अतः यह स्पष्ट है कि व्यक्तित्व की जैव भौतिक परिभाषाएं शरीर की बनावट एवं उससे सम्बन्धित लक्षणों पर विशेष बल देती है ।
आयुर्वेद में भी वात, पित्त एवं कफ-इन तीन तत्त्वों के आधार पर व्यक्तित्व का विश्लेषण हुआ है। मनोविज्ञान की भाषा में नाम कर्म को व्यक्तित्व का निर्धारक तत्त्व कह सकते हैं । जैन दर्शन में व्यक्तित्व के निर्धारक तत्त्वों को नाम कर्म की प्रकृति के रूप में जाना जाता है ।
कर्म - सिद्धान्त में भी व्यक्तित्व विश्लेषक अनेक तथ्यों का प्रतिपादन प्राप्त होता है । मनोविज्ञान में सामान्य, असामान्य व्यक्तित्व आदि का जो उल्लेख प्राप्त होता है, वह वर्णन पांच भावों के साथ विवेचनीय है। कर्म के उदय एवं विलय से उत्पन्न चेतना की जो परिणति होती है उसे भाव कहा जाता है। कर्म के क्षयोपशम, उपशम एवं क्षय की अवस्था को विलय कहा जाता है । औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक एवं पारिणामिक के भेद से भाव के पांच प्रकार है । तत्वार्थ में इन भावों को ही जीव का स्वरूप कहा गया है। इन भावों के ६४ • व्रात्य दर्शन
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