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९६ / जैनतत्त्वविद्या
मूल शरीर को न छोड़कर तैजस और कार्मण शरीर के साथ जीव-प्रदेशों का शरीर से बाहर निकलना समुद्धात है।
___ समुद्घात की ये परिभाषाएं श्वेताम्बर और दिगम्बर--दोनों परंपराओं में प्रचलित हैं। सात समुद्घातों में प्रथम छह समुद्घात छद्मस्थ के होते हैं और अन्तिम केवली समुद्घात केवलियों के ही होता है। वेदना समुद्घात
वात, पित्त आदि विकार-जनित रोग या विषपान आदि की तीव्र वेदना से आत्मप्रदेशों का शरीर से बाहर निकलना वेदना समुद्घात है। कषाय समुद्घात
__ कषाय की तीव्रता से आत्मप्रदेशों का अपने शरीर से तिगुने प्रमाण में बाहर निकलना कषाय समुद्घात है। मारणान्तिक समुद्घात
मृत्यु के समय आत्म-प्रदेश का शरीर से बाहर निकल आगामी उत्पत्तिस्थान तक फैलना मारणान्तिक समुद्घात है। वैक्रिय समुद्घात
वैक्रिय लब्धि के द्वारा किसी प्रकार की विक्रिया उत्पन्न करने के लिए मूल शरीर का त्याग न कर आत्मप्रदेशों का बाहर जाना और नाना रूपों की विक्रिया करना वैक्रिय समुद्घात है। तैजस समुद्घात
किसी व्यक्ति पर अनुग्रह या निग्रह करने के लिए शरीर का विस्फोट करना तैजस समुद्घात है । इसे तेजोलब्धि भी कहा जाता है। आहारक समुद्घात
आहारक लब्धि से सम्पन्न मुनि अपना सन्देह दूर करने के लिए अपने आत्मप्रदेशों से एक पुतले का निर्माण करते हैं और उसे सर्वज्ञ के पास भेजते हैं। वह उनके पास जाकर उनसे सन्देह की निवृत्ति कर पुन: मुनि के शरीर में प्रविष्ट हो जाता है । यह क्रिया इतनी शीघ्र और अदृश्य होती है कि दूसरों को इसका पता भी नहीं चल सकता। यह आहारक समुद्घात है। इसे आहारक लब्धि भी कहा जाता है।
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