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वर्ग २, बोल २५ / ९७ केवली समुद्घात
जब आयुष्य कर्म की स्थिति और दलिकों से वेदनीय कर्म की स्थिति और दलिक अधिक होते हैं, तब उनका समीकरण करने के लिए सहज रूप में केवली समुद्घात होता है । इसमें जीव के प्रदेश दण्ड, कपाट, मन्थान और अन्तरावगाह कर संपूर्ण लोकाकाश का स्पर्श कर लेते हैं। इस प्रक्रिया में केवल चार समय लगते हैं। अगले चार समयों में क्रमशः वे आत्म-प्रदेश सिमटते हुए पुनः शरीर में स्थित हो जाते हैं। यह समुद्घात तब होता है, जब आयुष्य अन्तर्मुहूर्त जितना शेष रहता
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