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वर्ग २, बोल २५ / ९५ स्वरूप-बोध से की जा सकती है। सात नारकी, पांच स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय, असंज्ञी तिर्यंच और असंज्ञी मनुष्य में एक हुण्डक संस्थान होता है । देव, यौगलिक तथा तिरेसठ शलाका-पुरुषों का संस्थान समचतुरस्र होता है । संज्ञी मनुष्य और संज्ञी तिर्यंच में छहों में से कोई भी संस्थान हो सकता है । सिद्ध आत्मा में कोई संस्थान नहीं होता।
___ समचतुरस्र-अस्र का अर्थ है कोण । जिस शरीर के चारों कोण समान हों, जिस शरीर के सभी अवयव अपने-अपने प्रमाण के अनुसार हों और जिस शरीर-संरचना में ऊर्ध्व, अधः एवं मध्य भाग सम हों, वह संस्थान समचतुरस्र होता है।
न्यग्रोधपरिमण्डल-न्यग्रोध का अर्थ है बड़ का वृक्ष । जिस शरीर की संरचना में वटवृक्ष की भांति नाभि से ऊपर का भाग बड़ा और नीचे का भाग छोटा हो, उसे न्यग्रोधपरिमण्डल कहा जाता है।
सादि-जिस शरीर में ऊपर का भाग छोटा और नीचे का भाग बड़ा हो, वह सादि संस्थान कहलाता है। इसका आकार वल्मीक की तरह होता है।
कुब्ज-जिस शरीर की संरचना में पीठ पर पुद्गलों का अधिक संचय हो, वह कुब्ज संस्थान है।
वामन–जिस शरीर के सभी अंग-उपांग छोटे हों, वह वामन संस्थान है।
हुण्डक—जिस शरीर की रचना में कोई अवयव प्रमाणोपेत नहीं होता, जिसके सभी अंग-उपांग हुण्ड की तरह संस्थित हों, वह हुण्डक संस्थान है।
२५. समुद्घात के सात प्रकार हैं१. वेदना
५. तैजस २. कषाय
६. आहारक ३. मारणान्तिक ७. केवली
४. वैक्रिय सामूहिक रूप से बलपूर्वक आत्मप्रदेशों को शरीर से बाहर निकालने या उनके इधर-उधर प्रक्षेपण करने को समुद्घात कहा जाता है।
वेदना आदि निमित्तों से आत्मप्रदेशों का शरीर से बाहर निकलना समुद्घात
कर्मों की स्थिति और अनुभाग के समीचीन उद्घात को समुद्घात कहते हैं।
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