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वर्ग २, बोल १८ । ८९ बिखरे हुए परमाणुओं और विशिष्ट पर्यावरण के योग से स्वतः उत्पन्न होते हैं, वे संमूर्छिम कहलाते हैं। देव, नारक, गर्भज मनुष्य और गर्भज तिर्यञ्चों के अतिरिक्त सभी प्राणी संमूर्च्छन जन्म प्राप्त करते हैं। एकेन्द्रिय से लेकर चतुरिन्द्रिय तक सभी जीव निश्चित रूप से संमूर्छिम होते हैं । पंचेन्द्रिय में कुछ तिर्यञ्च और मनुष्य संमूर्छिम होते हैं। इनका शरीर अंगुल के असंख्यातवें भाग जितना-सा होता है और ये जन्म के तत्काल बाद अपर्याप्त अवस्था में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं । संसार के सभी प्राणी इन तीनों प्रकारों से जन्म धारण करते हैं।
१८. मरण के तीन प्रकार हैं१. बाल मरण २. पण्डित मरण ३. बालपण्डित मरण
जन्म और मरण ये दोनों एक-दूसरे के विरोधी शब्द हैं। फिर भी ये साथ-साथ रहते हैं। जिस प्राणी का जन्म होता है, उसी की मृत्यु होती है। मृत्यु के बिना जन्म का अस्तित्व नहीं और जन्म के बिना मृत्यु का भी आधार नहीं है। सतरहवें बोल में जन्म के तीन प्रकार बताए गए हैं। इस बोल में मरण के प्रकारों का उल्लेख है।
बाल मरण-असंयमी का मरण बाल मरण कहलाता है । यह पहले से चौथे गुणस्थान तक के जीवों के होता है । इसका सम्बन्ध एक ओर मिथ्यात्व एवं अज्ञान से है तथा दूसरी ओर अव्रत से है। चौथे गुणस्थान में मिथ्यात्व चला जाता है। सम्यक्त्व की प्राप्ति हो जाती है। फिर भी वहां व्रत नहीं होता, संयम नहीं होता। इस दृष्टि से चौथे गुणस्थान तक बाल मरण माना जाता है । तीसरे गुणस्थान में किसी जीव की मृत्यु नहीं होती।
___पंडित मरण-पंडित मरण पूर्ण संयमी व्यक्ति के होता है । यह छठे से चौदहवें गुणस्थान तक होता है। इन गुणस्थानों में साधु के अतिरिक्त कोई जीव नहीं हो सकता। साधु सावद्ययोगविरति रूप संयम की आराधना करता है। संयम की क्षमता के कारण ही इन गुणस्थानों में होने वाले मरण को पंडित मरण कहा जाता है। तीसरे की भांति बारहवें और तेरहवें गुणस्थान में भी मृत्यु नहीं होती। इन तीन स्थानों को अमर माना गया है।
बालपंडित मरण-संयमासंयमी के मरण को बालपंडित कहा जाता है । इसमें
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