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९० / जैनतत्त्वविद्या बाल और पंडित- इन दो शब्दों का प्रयोग असंयम और संयम को एक साथ बताने के लिए है । यह पांचवें गुणस्थान में होता है। पांचवें गुणस्थान का अधिकारी श्रावक है। उसके जितनी सीमा तक असंयम है, उसकी अपेक्षा बाल मरण है और जितना संयम रहता है, उसकी अपेक्षा से पंडित मरण है । असंयम और संयम की एक साथ विवक्षा होने के कारण इस मरण का नाम बालपंडित मरण है।
१९. अन्तराल गति के दो प्रकार हैं१. ऋजु
२. वक्र एक योनि या जन्म से दूसरी योनि या जन्म तक की जो यात्रा होती है, गति होती है, उसे अन्तराल गति कहा जाता है। यह दो जन्मों के बीच की गति है। प्रत्येक संसारी प्राणी को यह गति करनी ही होती है । ___ ऋजु का अर्थ है सीधा । जिस गति में कोई मोड़ न हो, घुमाव न हो, वह ऋजुगति है। इस गति में काल का न्यूनतम विभाग एक समय लगता है। काल का इससे छोटा विभाग कोई है नहीं, अन्यथा ऋजुगति की पहुंच वहां तक हो जाती। इस गति से जीव लोकाकाश के इस छोर से उस छोर तक पहुंच जाता है। इतने कम समय में इतने विस्तृत क्षेत्र का अवगाहन आश्चर्य जैसा प्रतीत होता है। किन्तु विज्ञान ने स्पेस और टाइम के संकोच एवं विकोच का जो सिद्धान्त दिया है, वह जैनदर्शन के कई तथ्यों के सम्बंध में संगति बिठाने वाला है । अन्तराल गति में जीव की यात्रा का प्रसंग व्यवहार्य हो या नहीं, वैज्ञानिक अवश्य है।
वक्र का अर्थ है टेढ़ा । जिस गति में एक, दो या तीन मोड़ हों, वह वक्र गति कहलाती है। जिस स्थान में जीव मृत्यु को प्राप्त होता है, वहां से विषम श्रेणी के आकाश प्रदेशों में उत्पन्न होने वाला जीव वक्र गति करता है।
ऋजुगति करने वाला जीव एक समय में अपने गन्तव्य तक पहुंच जाता है। इसलिए वह अनाहारक नहीं होता। कोई जीव पूर्व शरीर को छोड़ता है तो वह अन्तिम समय तक आहार लेता है। वहां से अगले भव में पहुंचने के प्रथम समय में ही आहार ले लेता है, इसलिए वह अनाहारक नहीं हो सकता। वक्रगति वाला जीव एक, दो या तीन घुमाव लेकर अपने गन्तव्य स्थान तक पहुंचता है । घुमाव लेने से अन्तराल गति में समय अधिक लग जाता है। वहां किसी प्रकार का आहार
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