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८८ / जैनतावविधा
१७. जन्म के तीन प्रकार हैं१. गर्भ २. उपपात ३. संमूर्च्छन जब तक आत्मा कर्म-मुक्त नहीं होती, उसे जन्म और मृत्यु की परिक्रमा करनी होती है। जन्म के बाद मृत्यु और मृत्यु के बाद जन्म, यह एक निश्चित क्रम है। यह क्रम तब तक चलता रहता है, जब तक आत्मा सब कर्मों से मुक्त नहीं हो जाती। जन्म का अर्थ है उत्पत्ति । सब जीवों के उत्पन्न होने का क्रम एक समान नहीं होता, इसलिए जन्म के अनेक प्रकार हो जाते हैं । उन सब प्रकारों का संक्षिप्ततम वर्गीकरण किया जाए तो उसमें उक्त तीन श्रेणियों का निर्धारण किया जा सकता है। १. गर्भ
जिन जीवों की उत्पत्ति स्त्री-पुरुष के रज वीर्य से होती है, उनके जन्म को गर्भ कहा जाता है । इस श्रेणी में केवल पांच इन्द्रिय वाले मनुष्य और तिर्यश्च प्राणी आते हैं। वे तीन प्रकार के हैं—जरायुज, अण्डज और पोतज। जरायुज- जो जीव जन्म के समय एक विशेष प्रकार की झिल्ली से
परिवेष्टित रहते हैं, उनको जरायुज कहते हैं। मनुष्य, गाय आदि प्राणी जरायुज होते हैं। जो जीव अण्डों से उत्पन्न होते हैं, वे अण्डज कहलाते हैं।
पक्षी, सर्प आदि प्राणी इस वर्ग में आते हैं। पोतज- जो जीव जन्म के समय खुले अंग वाले होते हैं, जन्म के
तत्काल बाद दौड़ने लगते हैं, वे पोतज कहलाते हैं। हाथी, खरगोश, चूहा आदि प्राणियों की गणना इस वर्ग में की
जाती है। २. उपपात
___ जन्म के दूसरे प्रकार का नाम है उपपात । इससे उत्पन्न होने वाले जीव उपपातज कहलाते हैं । इस वर्ग में देव और नारक आते हैं। इनका जन्म नियत स्थान में होता है। जन्म के बाद बहुत कम समय (अन्तर्मुहूर्त) में ही इनके शरीर का पूरा निर्माण हो जाता है। देवों का उत्पत्ति-स्थल शय्या है और नारकों का कुम्भी। ३. संमूर्छन
जो जीव स्त्री और पुरुष या नर और मादा के संयोग बिना ही लोकाकाश में
अण्डज
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