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८२ / जैनतत्त्वविद्या योग स्थूल है। इसलिए मन और वचन योग की प्रवृत्ति का हेतु काय योग बनता
___योग की प्रवृत्ति निरन्तर होती रहती है । प्रवृत्ति के साथ बन्धन का अविनाभावी सम्बन्ध है । स्थूल और सूक्ष्म हर प्रवृत्ति समग्रता से कर्म पुद्गलों को आकर्षित करती है। इस दृष्टि से बन्धन के कारणों को विश्लेषित करना कठिन है। फिर भी स्थूल रूप से कुछ कारणों का संकेत किया जा सकता है
• ज्ञान या ज्ञानी के प्रति असद् व्यवहार ज्ञानावरणीय कर्म-बन्धन का हेतु
• दर्शन या दर्शनी के प्रति असद् व्यवहार दर्शनावरणीय कर्म-बन्धन का
हेतु है। दुःख देने और दुःख न देने की प्रवृत्ति वेदनीय कर्म-बन्धन का हेतु है । तीव्र कषाय का प्रयोग करने से मोह कर्म का बन्धन होता है। क्रूर व्यवहार, वंचनापूर्ण व्यवहार, ऋजुव्यवहार और संयत व्यवहार से क्रमश: नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव आयुष्य का बन्धन होता है। कथनी और करनी की समानता से शुभ नाम तथा असमानता से अशुभ नाम कर्म का बन्धन होता है। अहंकार करने से नीच गोत्र और अहंकार का विसर्जन करने से उच्च
गोत्र कर्म का बन्धन होता है। • किसी के कार्य में बाधा डालने से अन्तराय कर्म का बन्धन होता है।
कर्म आठ हैं। आठों कर्मों के बन्धन में स्थूल रूप से निमित्त बनने वाले आठ कारणों को यहां उल्लिखित कर दिया गया है। यह मात्र संकेत है। ऐसे और भी अनेक कारण हैं, जो बन्धन में निमित्त हैं। उन सबको जानकर उनसे उपरत रहने का प्रयास करना ही इस ज्ञान की सार्थकता है।
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