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वर्ग २, बोल ५ / ६९ लिए अमनोज्ञ । चर्मकार चमड़े के जूते बनाता है। वह दिन-रात चमड़े के बीच में रहता है। चमड़े की गन्ध उसे दुर्गन्ध नहीं लगती। पर कोई अन्य व्यक्ति उधर से गुजर भी जाता है, तो उसके लिए वह गन्ध असह्य हो उठती है। इस दृष्टि से देखा जाए तो सुगन्ध और दुर्गन्ध का वर्गीकरण स्थिर नहीं है। फिर भी कुछ चीजें ऐसी हैं, जो गन्ध को दो प्रकारों में बांटती हैं। भगवती सूत्र ८/१०९ में कोष्ठापुट चूर्ण को सुगन्ध और मृतक शरीर को दुर्गन्ध के निदर्शन रूप में प्रस्तुत किया है। चौथी इन्द्रिय है रसना
इसका विषय है रस ।रस के पांच प्रकार हैं-१. तिक्त, २. कटु, ३. कषाय, ४. अम्ल, ५. मधुर।
रसों का ग्रहण रसना (जिह्वा) करती है, इसलिए इन्हें रसनेन्द्रिय के विषय रूप में स्वीकार किया गया है । सौंठ का स्वाद तिक्त होता है। नीम का रस कटु होता है। हरीतकी का रस कसैला होता है। इमली का रस अम्ल (खट्टा) होता है और चीनी का स्वाद मधुर होता है । मूलत: रस पांच हैं। इनके मिश्रण से नए रसों की निष्पत्ति भी हो सकती है, पर गौण होने के कारण उनका ग्रहण नहीं किया गया है।
संसार में जितने प्राणी हैं, उनमें पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु और वनस्पति के जीवों को छोड़कर शेष सब जीवों के रसनेन्द्रिय होती है । जैसे-जैसे चेतना विकसित होती है, रस-बोध की क्षमता भी बढ़ती जाती है । पांचवीं इन्द्रिय है स्पर्शन
इसका विषय है-स्पर्श । स्पर्श के आठ प्रकार हैं१. शीत, २. उषण, ३. स्निग्ध, ४. रूक्ष, ५. कर्कश, ६. मृदु, ७. गुरु, ८. लघु ।
इनमें प्रथम चार स्पर्श मूल के हैं। शेष चार स्पर्श सापेक्ष हैं। शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष स्पर्श की बहुलता और न्यूनता के आधार पर लघु, गुरु, मृदु और कर्कश स्पर्श बनते हैं। रूक्ष स्पर्श की बहुलता से लघु स्पर्श होता है । स्निग्ध स्पर्श की बहुलता से गुरु स्पर्श होता है। शीत और स्निग्ध स्पर्श की बहुलता से मृदु स्पर्श बनता है तथा और रूक्ष स्पर्श की बहुलता से कर्कश स्पर्श बनता है।
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