________________
रसन इन्द्रिय के पांच विषय हैं१. तिक्त
२. कटु
३. कषाय
स्पर्शन इन्द्रिय के आठ विषय हैं
१. शीत
२. उष्ण
३. स्निग्ध
४. अम्ल
५. मधुर
५. कर्कश
६. मृदु
७. गुरु
४. रूक्ष
८. लघु
I
इन्द्रियां ज्ञान करने का साधन हैं । इसलिए ये ग्राहक हैं । इनके ग्राह्य तत्त्व विषय कहलाते हैं । इन्द्रियां पांच हैं और इनके विषय भी पांच हैं - शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श । एक-एक विषय का विस्तार किया जाए तो इनकी संख्या तेईस हो जाती है ।
पहली इन्द्रिय है श्रोत्र
श्रोत्र इन्द्रिय का विषय है शब्द । शब्द क्या है ? उसके कितने प्रकार हैं ? उसका उपयोग क्या है ? ये ऐसे प्रश्न हैं, जो शब्द के सम्बन्ध में अधिक विस्तार से जानकारी कराने वाले हैं। पहला प्रश्न है— शब्द क्या है ? जो बोला जाता है, वह शब्द है । यह शब्द की सापेक्ष परिभाषा है । जो ध्वनित होता है, वह शब्द 1 यह भी एक सापेक्ष परिभाषा है । निरपेक्ष प्रतिपादन से किसी भी तत्त्व का सही बोध नहीं हो सकता। इसलिए तत्त्वबोध की दिशा में सापेक्षता के मूल्य को नकारा नहीं जा सकता | शब्द के तीन प्रकार हैं- १. जीव शब्द, २. अजीव शब्द, ३. मिश्र शब्द । व्याकरण ग्रन्थों में जीव- शब्द के उत्पत्तिस्थानों का उल्लेख करते हुए कहा गया है—
अष्टौ स्थानानि वर्णानामुरः कण्ठः शिरस्तथा । जिह्वामूलं च दन्ताश्च नासिकौष्ठौ च तालु च ॥
Jain Education International
वर्ग २, बोल ५ / ६७
हृदय, कण्ठ, शिर, जिह्वामूल, दांत, नासिका, होंठ और तालु —ये आठ स्थान हैं, जहां से शब्द की उत्पत्ति होती है। इन आठों स्थानों का सीधा सम्बन्ध जीव से है | इसलिए इनसे होने वाला शब्द जीव शब्द कहलाता है ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org