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वर्ग २, बोल ४ / ६५
वचन रूप में प्रयुक्त होने वाले सजातीय पुद्गल - समूह का नाम वचन- वर्गणा है ।
• श्वासोच्छ्वास रूप में प्रयुक्त होने वाले सजातीय पुद्गल-समूह का नाम श्वासोच्छ्वास - वर्गणा है ।
इन आठों वर्गणाओं में सबसे स्थूल वर्गणा औदारिक है और सबसे सूक्ष्म वर्गणा कार्मण है ।
सूक्ष्म वर्गणा में संख्या की दृष्टि से परमाणु स्थूल वर्गणा से अधिक होते हैं । सब वर्गणाएं अनन्त-प्रदेशी स्कन्ध हैं । इनमें मन, वचन, श्वासोच्छ्वास और कार्मण वर्गणा के अतिरिक्त शेष सब वर्गणाएं अष्टस्पर्शी हैं। ये वर्गणाएं पूरे लोक में व्याप्त हैं । किन्तु इनका प्रयोग तभी हो सकता है, जब ये जीव द्वारा गृहीत हो जाएं। संसार का कोई भी प्राणी इन वर्गणाओं में से अपने - अपने योग्य वर्गणाओं के योग बिना अपना काम नहीं कर सकता। वह हर क्षण नई वर्गणा का स्वीकार, परिणमन और विसर्जन करता रहता है ।
४. पुद्गल के चार लक्षण हैं
१. स्पर्श
२. रस
लक्षण का अर्थ है पहचान ।
३. गन्ध
४. वर्ण
'लक्ष्यन्ते परिचीयन्ते पुद्गलाः यैस्तानि लक्षणानि' ।
पुद्गल की पहचान के जो हेतु हैं, वे ही उसके लक्षण हैं । पुद्गल का शाब्दिक अर्थ है— 'पूरणगलनधर्मत्वात् पुद्गलः' । जिसमें पूरण - एकीभाव और गलन—पृथग्भाव होता है, वह पुद्गल है । यह 'जैनसिद्धान्त-दीपिका' की परिभाषा है । इसी ग्रन्थ में पुद्गल के स्वरूप का विश्लेषण करते हुए कहा गया है - 'स्पर्शरसगन्धवर्णवान् पुद्गलः' ।
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जो द्रव्य स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण युक्त होता है, वह पुद्गल है । इस व्याख्या का फलित यह है कि जो देखा जा सके, सूंघा जा सके, चखा जा सके और जिसका स्पर्श किया जा सके, वह पुद्गल है। यहां इन्द्रियों द्वारा गृहीत होने वाले पदार्थ को पुद्गल माना गया है। पर उक्त परिभाषा में एक इन्द्रिय छूट गई है। जो सुना जाता है, वह पुद्गल है; इस व्याप्ति को स्वीकार करने में कोई कठिनाई नहीं है । इस दृष्टि
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