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६४ / जैनतत्त्वविद्या
३. जीव के प्रयोग में आने वाले पुद्गल
स्कन्धों की आठ वर्गणाएं हैं१. औदारिक वर्गणा ५. कार्मण वर्गणा २. वैक्रिय वर्गणा ६. मनो वर्गणा ३. आहारक वर्गणा ७. वचन वर्गणा
४. तैजस वर्गणा८. श्वासोच्छ्वास वर्गणा पुद्गल के दो रूप हैं—परमाणु और स्कन्ध । द्रव्य की दृष्टि से पुद्गल अनन्त हैं। क्षेत्र का सीमांकन किया जाए तो वह सम्पूर्ण लोक में है। काल की अपेक्षा वह आदि-अन्त रहित है। भाव की दृष्टि से वह वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श युक्त होने के कारण रूपी है। उसका गुण है ग्रहण । ग्रहण अर्थात् मिलन और बिखराव । 'परमाणु' पुद्गल की सबसे छोटी इकाई है और अचित्त महास्कन्ध उसका सबसे बड़ा रूप है। पुद्गल हमारे लिए बहुत उपयोगी चीज है, पर बहुत से पुद्गल ऐसे भी हैं जिन्हें हम काम में नहीं ले सकते । परमाणु ही नहीं, ऐसे अनन्त-अनन्त स्कन्ध भी हैं, जिनका हमारे लिए सीधा कोई उपयोग नहीं है। जो पुद्गल-स्कन्ध हमारे काम में आते हैं, उन्हें वर्गणा कहा जाता है । वर्गणा का अर्थ है-सजातीय पुद्ग्लों का समूह । वे वर्गणाएं आठ हैं
• औदारिक शरीर के रूप में प्रयुक्त होने वाले सजातीय पुद्गल-समूह
का नाम औदारिक-वर्गणा है। वैक्रिय शरीर के रूप में प्रयुक्त होने वाले सजातीय पुद्गल-समूह का नाम वैक्रिय-वर्गणा है। • आहारक शरीर के रूप में प्रयुक्त होने वाले सजातीय पुद्गल-समूह का
नाम आहारक-वर्गणा है। • तैजस शरीर के रूप में प्रयुक्त होने वाले सजातीय पुद्गल-समूह का
नाम तैजस-वर्गणा है। • कार्मण शरीर के रूप में प्रयुक्त होने वाले सजातीय पुद्गल-समूह का
नाम कार्मण-वर्गणा है। • मन रूप में प्रयुक्त होने वाले सजातीय पुद्गल-समूह का नाम मनोवर्गणा
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