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वर्ग १, बोल २४ । ५५ ४. संज्वलन-चतुष्क
संज्वलन-चतुष्क से यथाख्यात चारित्र का अभिघात होता है।
यथाख्यात चारित्र का अभिघात होने से व्यक्ति वीतराग नहीं बन सकता। वीतरागता हर अध्यात्मनिष्ठ व्यक्ति का लक्ष्य होता है। पर वह तब तक उपलब्ध नहीं हो सकती, जब तक संज्वलन कषाय का उदय रहता है।
ये चारों ही अभिघात आत्मगुणों के विकास में बाधक हैं। अत: विशेष पुरुषार्थ के द्वारा कषाय-चतुष्टयी को क्षीण करने का प्रयत्न होना बहुत आवश्यक है ।
२. रति
२४. नोकषाय के नौ प्रकार हैं१. हास्य
६. जुगुप्सा
७. स्त्रीवेद ३. अरति
८. पुरुषवेद ४. भय
९. नपुंसकवेद ५. शोक कषाय के सोलह भेदों और उनके उदाहरणों को समझने के बाद नोकषाय को समझना भी जरूरी है। सामान्यत: नो शब्द निषेध का वाचक होता है। किन्तु यहां यह सादृश्य का वाचक है । नोकषाय कषाय को उत्तेजना देने वाला है, इसलिए वह कषाय का ही प्रतिरूप है । वह कुछ हल्का है, अत: उसके लिए दूसरे शब्द का प्रयोग किया है।
हास्य, रति, अरति, भय, शोक, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद-ये नोकषाय के नौ प्रकार हैं। इनमें पहला प्रकार है हास्य । हास्य दो प्रकार का होता है—स्मित और अट्टहास । स्मित से कषाय को सहारा नहीं मिलता, इसलिए वह हेय नहीं है । अट्टहास आगे चलकर कषाय में परिणत हो जाता है। कौरव और पांडवों के बीच हुआ महाभारत हास्य की ही तो परिणति था। यदि द्रौपदी कौरवों का उपहास नहीं करती तो संभव है महाभारत नहीं होता।
रति और अरति—ये दोनों विरोधी शब्द हैं । असंयम में अनुराग और संयम के प्रति उदासीनता इसकी निष्पत्ति है। इससे चेतना की ऊर्जा का प्रवाह विपरीत दिशा में बहने लगता है। विपरीतगामी प्रवाह व्यक्ति को अशक्त बना देता है। इससे चैतसिक निर्मलता मलिनता में बदल जाती है।
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