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५२ / जैनतत्त्वविद्या
उन्होंने कषाय के स्वरूप को स्पष्टता से समझाने के लिए कुछ प्रतीकों को काम में लिया है। किसी प्रतीक या उदाहरण के माध्यम से कही गई बात सुबोध हो जाती है । इससे तत्त्व की गंभीरता सरलता और सरसता में परिणत हो जाती है । इस दृष्टि से बाईसवें बोल में कषाय के सोलह उदाहरण बतलाये गए हैं ।
अनन्तानुबंधी कषाय के चार भेद हैं--क्रोध, मान, माया और लोभ । अनन्तानुबंधी क्रोध पत्थर की रेखा के समान है । सामान्यत: पत्थर में रेखा - दरार होती नहीं और हो जाने के बाद वह सहज रूप से मिटती नहीं । इसी प्रकार अनन्तानुबंधी क्रोध गहरी पकड़ के रूप में होता है। क्रोध की उत्पत्ति के निमित्त समाप्त हो जाने पर भी व्यक्ति शांत नहीं होता । उसका मन आग की भांति धधकता रहता है । उसके चारों ओर उत्तेजना का वलय निर्मित हो जाता है ।
पत्थर की रेखा को मिटाने के लिए उसे छेनी से तराशने की अपेक्षा रहती है । इसी प्रकार अनन्तानुबन्धी क्रोध को क्षान्ति रूपी छेनी से तराशने पर ही उसका प्रभाव क्षीण हो सकता है ।
अनन्तानुबंधी मान पत्थर के स्तम्भ के समान है । लकड़ी का खंभा इधर-उधर हो सकता है । पर पत्थर के खंभों को झुकाना प्रयत्न- साध्य भी नहीं है । वह टूट जाता है, पर झुकता नहीं। इसी प्रकार अनन्तानुबन्धी मान रखने वाला व्यक्ति किसी भी परिस्थिति के साथ समझौता नहीं कर सकता । मृदुता का विकास ही इस स्थिति का समाधान है ।
अनन्तानुबंधी माया बांस की जड़ के समान है। बांस की जड़ इतनी वक्र होती है कि वहां टेढ़ेपन के अतिरिक्त कुछ होता ही नहीं। ऐसी माया व्यक्ति को धूर्तता के शिखर पर पहुंचा देती है। इसे प्रतिहत करने के लिए ऋजुता का अभ्यास आवश्यक है।
अनन्तानुबंधी लोभ कृमि-रेशम के समान है। इसका रंग दिनों-दिन गहरा होता जाता है । अन्य रंग प्रयत्न करने पर उतर जाते हैं। मांजिष्ठ का रंग पक्का होता है। कृमि- रेशम उससे भी अधिक पक्के रंग वाला होता है । अनन्तानुबंधी लोभ का प्रभाव भी संतोष रूपी रंगकाट के द्वारा समाप्त हो सकता है ।
अप्रत्याख्यान कषाय अनन्तानुबंधी से कुछ हल्का होता है । इसकी तुलना क्रमश: भूमि की रेखा, अस्थि के स्तम्भ, मेंढ़े के सींग और कीचड़ के रंग से की गई है। कड़ी भूमि में पड़ी हुई दरार को सामान्यतः मिटाना कठिन है। हवा उसे भर नहीं सकती, किन्तु वर्षा के योग से भूमि में नमी का प्रवेश होता है, वह रेखा सम हो जाती है। इसी प्रकार अस्थि-स्तम्भ भी पत्थर के खंभे से कछ लचीला होता है।
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