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वर्ग १, बोल २२ / ५१ कषाय की तीव्रता और मंदता के आधार पर किया गया यह वर्गीकरण व्यवहार में भी स्पष्ट दिखाई देता है । एक व्यक्ति का क्रोध इतना तीव्र होता है कि वह जन्म-जन्मान्तर तक उसके साथ रहता है। एक व्यक्ति का क्रोध इतना नाजुक होता है कि इस क्षण क्रोध आया, दूसरे क्षण नामशेष हो गया। यह स्थिति समता की विशेष साधना से प्राप्त की जा सकती है। कषाय- उतुष्क के वारों प्रकारों का अस्तित्व पूर्णरूप से जब समाप्त होता है, तब साधक वीतराग बन जाता है और उसके बाद वह देह को त्याग कर सिद्ध हो जाता है।
मान
प्रत्याख्यान
२२. कषाय के सोलह उदाहरण हैंअनन्तानुबन्धी क्रोध- पत्थर की रेखा के समान
पत्थर के स्तंभ के समान माया- बांस की जड़ के समान
लोभ- कृमि-रेशम के रंग के समान अप्रत्याख्यान क्रोध- भूमि की रेखा के समान मान
अस्थि के स्तंभ के समान माया- मेंढ़े के सींग के समान लोभ- कीचड़ के रंग के समान क्रोध- बालू की रेखा के समान मान- काष्ठ के स्तंभ के समान माया- चलते बैल के मूत्र की धारा के समान
लोभ- गाड़ी के खंजन के समान संज्वलन क्रोध- जल की रेखा के समान
लता के स्तंभ के समान
छिलते हुए बांस की छाल के समान लोभ- हल्दी के रंग के समान इक्कीसवें बोल में कषाय की न्यूनाधिकता के आधार पर होने वाले उसके वर्गीकरण की चर्चा है। किन्तु जनसाधारण इतने मात्र से तत्त्व को गहराई से नहीं समझ सकता । तत्त्वज्ञ पुरुषों का एक लक्ष्य रहा है---हर व्यक्ति को तत्त्व-बोध कराना ।
मान
माया
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