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५०/ जैनतनवालिया
२१. काय के सोलह प्रकार हैंअनन्तानुबन्धी- क्रोध, मान, भाषा, लोभ अमस्याश्यान ... क्रोध, मान, माथा, लोभ प्रत्याख्यान - क्रोध, मान, भाया, लोभ
संज्वलन - क्रोध, मान, माया, लोभ कपाय आत्मा की एक अवस्था है। उसके मुख्यत: चार भेद हैं--क्रोध, भान, माया और लोभ । क्रोध आदि आत्मा के स्वभाव नहीं, विभाव हैं । ये विजातीय तत्त्व हैं। फिर भी आत्मा से संश्लिष्ट होकर उसके अभिन्न अंग बन गए हैं। ये आत्मा के साथ रहने पर भी उसके अपने नहीं हैं । इसलिए विशेष प्रयत्न के द्वारा इन्हें अलग किया जा सकता है। पर यह स्थिति विशिष्ट साधना से ही संभव हो सकती है।
आत्मविकास की चौदह भूमिकाओं में से दस भूमिकाएं पार कर लेने के बाद इस कषाय-चतुष्टयी से छुटकारा मिलता है। उससे पहले कमबेसी रूप में हर आत्मा कषाय से भावित रहती है।
कषाय की तीव्रता और मंदता के आधार पर क्रोध, मान, माया और लोभ के चार-चार भेद किए गए हैं । सब भेदों को मिलाने से उनकी संख्या सोलह हो जाती
है।
अनन्तानुबन्धी
अनन्त अनुबन्ध-श्रृंखलाएं जिस कषाय के साथ जुड़ी रहती हैं, वह अनन्तानुबन्धी कषाय होता है । इन अनुबन्धों का कोई ओर-छोर नहीं होता। ये आगेसे-आगे बढ़ते जाते हैं। अनन्तानुबन्धी कषाय के उदय से क्रोध, मान, माया और लोभ बहुत गहरे हो जाते हैं। अप्रत्याख्यान
इसमें कषाय के अनुबन्ध कुछ शिथिल होते हैं। प्रत्याख्यान
इसमें कषाय काफी हल्का हो जाता है । संज्वलन
इसमें कषाय का अस्तित्व है, पर वह नाम मात्र का है, अधिक समय तक टिक नहीं सकता।
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