________________
या गुणस्थान है मिथ्यादृष्टि गुणस्थान ।
१. मिथ्यादृष्टि — प्रथम गुणस्थान में मोह कर्म का सबसे कम क्षयोपशम होता है । जो स्वल्पतम क्षयोपशम है, उसको मिथ्यादृष्टि कहा जाता है । अथवा मिथ्यात्वी व्यक्ति की जितनी सही दृष्टि है, वह मिथ्यादृष्टि गुणस्थान कहलाता है ।
यहां प्रश्न यह उठता है कि क्या मिथ्यात्वी की दृष्टि भी सही हो सकती है ? जैन सिद्धांत के अनुसार संसार का कोई भी प्राणी ऐसा नहीं, जिसमें आंशिक रूप से सही दृष्टि न हो । व्यक्त चेतना वाले जीवों में उस अंश को साक्षात् देखा जा सकता है और अव्यक्त चेतना वाले जीवों में वह अव्यक्त रहता है । फिर भी इस वैशिष्ट्य को नकारना संभव नहीं है। क्योंकि चेतन और अचेतन की भिन्नता का न्यूनतम मानक यही है ।
वर्ग १, बोल १६ / ४१
एक मिथ्यात्वी व्यक्ति आत्मा, परमात्मा, मोक्ष आदि के संबंध में कुछ नहीं जानता, फिर भी वह इतना जरूर मानता है कि ब्रह्मचर्य अच्छा है, तपस्या अच्छी है, संयम अच्छा है। उसकी यह सही समझ ही उसका मिथ्यादृष्टि गुणस्थान है ।
यहां दूसरा प्रश्न यह उपस्थित होता है कि किसी व्यक्ति के सही दृष्टिकोण को मिथ्या क्यों कहा जाता है ? सम्यक्त्वी और मिथ्यात्वी की जिस दृष्टि में कोई अन्तर न हो, उसे एक ही नाम क्यों नहीं दिया गया ?
मूल्यांकन की कई कसौटियां होती हैं। प्रस्तुत सन्दर्भ में व्यक्ति का मूल्यांकन पात्र भेद से किया गया है । जिस प्रकार हरे या पीले रंग की बोतल में डाला हुआ साफ पानी भी हरा या पीला दिखाई देता है इसी प्रकार मिथ्यात्वी की सम्यक् दृष्टि को मिथ्यात्व के संसर्ग से मिथ्या दृष्टि कहा गया है
इसी वर्ग के चौदहवें बोल में मिथ्यात्वी के ज्ञान को अज्ञान बतलाया गया है । उसी तर्क के आधार पर गुणस्थानों की चर्चा में मिथ्यात्वी व्यक्ति की सही दृष्टि, जो कि क्षयोपशम भाव है, को मिथ्यादृष्टि गुणस्थान माना गया है ।
२. सास्वादनसम्यग्दृष्ट — दूसरी श्रेणी में कुछ अधिक क्षयोपशम होता है । यह श्रेणी सम्यक्त्व को छोड़कर मिथ्यात्व की ओर अग्रसर प्राणी को उपलब्ध होती है । जैसे कोई पत्ता वृक्ष से गिरता है और धरती का स्पर्श नहीं करता । सम्यक्त्व से मिथ्यात्व की ओर संक्रमण काल में यह स्थिति रहती है । इस श्रेणी का नाम है सास्वादनसम्यक्दृष्टि गुणस्थान ।
३. मिश्रदृष्टि – तीसरी श्रेणी मिश्रदृष्टि गुणस्थान है । यह मिथ्यात्व और सम्यक्त्व के मिश्रण यानी संदिग्ध अवस्था की प्रतीक है । इस श्रेणी में रहने वाला
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org