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________________ वर्ग १, बोल १५ / ३९ के अनुसार इस रूपांतरण का नाम है पर्यायपरिवर्तन । संसार का कोई भी 'द्रव्य' गुण और पर्याय के बिना नहीं होता । आत्मा भी अपने गुण और पर्यायों का समवाय है। गुण सदा साथ रहने वाला धर्म है और पर्याय बदलते रहने वाला धर्म है । गुण और पर्याय केवल आत्मा में ही नहीं, जड़ पदार्थ में भी होते हैं । चेतन और जड़ पदार्थ का समन्वित रूप यह सृष्टि है। इनके अतिरिक्त इस संसार में तीसरा कोई तत्त्व नहीं मिलता। आत्मा एक द्रव्य है। फिर भी पर्याय-भेद के आधार पर वह अनेक रूपों में दिखाई देती है। पर्यायों के विस्तार में न जाएं तो मूलतः उसके दो भेद होते हैं-द्रव्य आत्मा और भाव आत्मा । द्रव्य आत्मा यानी चेतनामय असंख्य अविभाज्य अवयवों का समूह आत्म-द्रव्य । इसमें गुण और पर्याय हैं, पर वे विवक्षित नहीं हैं। केवल शुद्ध आत्म-द्रव्य की विवक्षा अन्य पर्यायों की सत्ता होने पर भी उन्हें गौण कर देती है ।आत्मा एक त्रैकालिक तत्त्व है । अतीत में इसका अस्तित्व था, वर्तमान में है और भविष्य में रहेगा। कोई भी काल या परिस्थिति इस आत्म-द्रव्य को अनात्म द्रव्य नहीं बना सकती। ___शाश्वत और अविभाज्य तत्त्व होने पर भी यह परिवर्तनशील है । इसकी पर्याय (अवस्था) बदलती रहती है। प्रतिक्षण इसकी अवस्था में बदलाव आता है। वह इतना सूक्ष्म होता है कि साधारण व्यक्ति को गम्य नहीं हो सकता। किन्तु स्थूल परिवर्तनों के आधार पर आत्मा की अनेक अवस्थाएं निर्विवाद रूप से प्रमाणित हैं। द्रव्य और भाव दोनों विवक्षाओं के आधार पर पन्द्रहवें बोल में आत्मा के आठ प्रकार बताए गये हैं। द्रव्य-आत्मा शुद्ध चेतना है। क्रोध, मान, माया, लोभ से रंजित होने पर वह कषाय आत्मा हो जाती है। आत्मा की जितनी प्रवृत्ति है, वह योग आत्मा के नाम से पहचानी जाती है । चेतना जब व्यापृत होती है, वह उपयोग आत्मा है । ज्ञानात्मक और दर्शनात्मक चेतना ज्ञान और दर्शन आत्मा है । आत्मा की विशिष्ट संयममूलक अवस्था चारित्र आत्मा है। आत्मा की शक्ति वीर्य आत्मा के रूप में प्रसिद्ध है। ये आठ आत्माएं भी सापेक्ष दृष्टि से ही बतायी गयी हैं। क्योंकि आत्मा का पर्यायांतरण केवल इन्हीं आठ बिंदुओं में सीमित नहीं है। आत्मा की जितनी पर्यायें हैं, उतनी ही आत्माएं हो सकती हैं। इस दृष्टि से कहा जा सकता है कि आत्मा अनंत हैं। प्रश्न हो सकता है कि उन आत्माओं की पहचान किस नाम से होगी?जो अवस्था, वही पहचान और वही नाम । वैसे सैद्धांतिक भाषा में आठ आत्मा के अतिरिक्त आत्मा की सभी अवस्थाओं को अन्य आत्मा (अनेरी आत्मा) कहा जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003129
Book TitleJain Tattvavidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2008
Total Pages208
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, M000, & M015
File Size8 MB
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