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वर्ग १, बोल १३ । ३३ आत्मा का प्रयत्न मनोयोग है । उसके चार भेद हैं—सत्य मनोयोग, असत्य मनोयोग, मिश्र मनोयोग और व्यवहार मनोयोग। सत्य मनोयोग- सत्य के विषय में होने वाली मन की प्रवृत्ति सत्य
मनोयोग है। असत्य मनोयोग- असत्य के विषय में होने वाली मन की प्रवृत्ति असत्य
मनोयोग है। मिश्र मनोयोग- सत्य-असत्य के मिश्रण में होने वाली मन की प्रवृत्ति
मिश्र मनोयोग है। व्यवहार मनोयोग- मन की जो प्रवृत्ति सत्य भी नहीं है और असत्य भी
नहीं है, उस प्रवृत्ति का नाम व्यवहार मनोयोग है। इसका सम्बन्ध मुख्यतः आदेशात्मक, उपदेशात्मक
चिन्तन से है। वचनयोग
भाषा के द्वारा होने वाला आत्मा का प्रयत्न वचनयोग है। मनोयोग की ही भांति वचनयोग के भी चार प्रकार हैं। काययोग
शरीर के द्वारा होने वाला आत्मा का प्रयत्न काययोग है। काययोग का सम्बन्ध शरीर के साथ है। शरीर पांच हैं१. औदारिक, २. वैक्रिय, ३. आहारक, ४. तैजस ५. कार्मण ।
मनुष्य और तिर्यञ्च गति के जीव औदारिक शरीर वाले होते हैं। औदारिक शरीर वाले जीवों की हलन-चलन रूप प्रवृत्ति औदारिक काययोग कहलाती है।
काययोग का दूसरा भेद है—औदारिकमिश्र काययोग । औदारिक का मिश्र कार्मण, वैक्रिय और आहारक इन तीनों शरीरों के साथ होता है । वह चार प्रकार से हो सकता है
(क) मृत्यु के समय पिछला शरीर छूट जाता है। उसके बाद मनुष्य और तिर्यञ्च गति में उत्पन्न होने वाला जीव अपने नये उत्पत्ति स्थान में पहुंचकर आहार ग्रहण कर लेता है, पर जब तक शरीर पर्याप्ति का बन्ध पूरा नहीं होता है, तब तक कार्मण काययोग के साथ औदारिक का मिश्र होता है।
(ख) केवली समुद्घात के समय दूसरे, छठे और सातवें समय में कार्मण काययोग के साथ औदारिक का मिश्र होता है । ।
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